वर्ष 40:अंक 24 II 1- 15 अगस्त 2017
फासिस्ट
मैंने कहा कि आप फासिस्ट हैं तो उसने कहा कि वह मनुष्य है मैंने कहा कि आप फासिस्ट हैं तो उसने कहा कि वह जनप्रतिनिधि है मैंने कहा कि आप फासिस्ट हैं तो उसने कहा कि उसके पास आधार-कार्ड है मैंने कहा कि आप फासिस्ट हैं तो उसने कहा कि वह शाकाहारी है मैंने कहा […]
यंदु कुंड
ऐसा क्यों है, ऐसा क्यों ऐसा क्योंकर होता है ? एक दिवस बन जाए ‘विधाता’ पाँच बरस क्यों रोता है ? गोल-गोल सब घूम रहे है मुगालता चलने का, आकर वहीं पहुँचते हैं रस्ता कहाँ निकलने का ? उसी सियासी कीचड़ में फिर से धँस जाना होता है। जर्जर हुई व्यवस्था को हर कोई गरियाता […]
मापदंड बदलो
मेरी प्रगति या अगति का मापदंड बदलो तुम, जुएं के पत्ते – सा मैं अभी अनिश्चित हूँ मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं। कोंपलें उग रही हैं पत्तियाँ झड़ रही हैं। मैं नया बनने के लिये खराद पर चढ़ रहा हूँ। लड़ता हुआ नयी राह गढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ। अगर […]
वोट से पहले सोच जरा
बारी बारी से लूटें इकरार किया है हाथ कमल ने। भ्रष्टाचार में इक दूजे का साथ दिया है हाथ कमल ने। दारू पीकर जय मत बोल वोट से पहले जरा पर्वत नदियां जंगल सब बरबाद किया है हाथ कमल ने। – बल्ली सिंह चीमा
गठबंधन
– सुभाष तराण ताजा-ताजा खबर मिली है जंगल के अखबारों से, सुना है सन्धि हो चुकी है, सिंहों की सियारों से। इसी शर्त पर लकड़बग्घे भी गठबन्धन को राजी हैं, जंगल को अब मुक्त किया जायेगा अत्याचारों से। पानी में से मगरमच्छ और आसमान से गिद्धों का, प्रतीक चिन्ह से सम्मानित कर, स्वागत हुआ है […]
(Untitled)
प्रस्तावित भीड़ में शरीक होने के लिये, अभी मैंने कोई निर्णय नहीं लिया था अचानक, उसने मेरा हाथ पकड़ कर खींच लिया। और मैं जेब में जूतों के टोकन और दिमाग में ताजे अखबार की कतरन लिये हुए धड़ाम से – ‘आम चुनाव’ की सीढि़यों से फिसल कर मत पेटियों के गड़गच्च अंधेरे में गिर […]
बादल ओ !
बादल ओ ! हम नये-नये धानों के बच्चे तुम्हें पुकार रहे हैं बादल ओ ! बादल ओ ! बादल ओ ! हम बच्चे हैं चिड़ियों की परछाई पकड़ रहे हैं उड़-उड़ हम बच्चे हैं हमें याद आई है जाने किन जनमों कीे आज हो गया है जी उन्मन तुम कि पिता हो इन्द्रधनुष बरसो कि […]
डेनिस वाले भाई जी
डेनिस वाले भाई जी, डेनिस वाले भाई जी नए किस्म की कार्य संस्कृति साथ में अपने लाए जी डेनिस वाले भाई जी, डेनिस वाले भाई जी। कहीं पे उथली कहीं पे गहरी व्यवस्था यहाँ की अंधी बहरी आपके राज का हासिल है बस रुपया, ठेका, कोर्ट, कचहरी सत्ता की लोलुपता आपको किस मुकाम तक लाई […]
नानीसार पर परदेश के दलाल के नाम एक कविता
) हे महराज ! धन्य राजा धन्य नर-नरायण इन्द्र का इनरासन आशन क्या प्रशासन प्रशासन क्या शासन हुआ तुम्हारा सिंहासन नाच हुए जहाँ किसम -किसम के अमला-तुलबा लस्कर हुआ जिले का कलक्टर जमीन का अमीन पट्टी का पट्वारी गाँव के पंच-पधान घाट के खबीश-मसाण अतरिये चमचे जवान हुए तुम्हारे भगत तैंतीस कोटी झोला छाप मुरझाये […]
नानीसार के नाम
– दिग्विजय सिंह बिष्ट जब खेतों की लड़ाई में सत्ता भागीदारी करती है जब सुधबुध खो जनता धरने की राह पकड़ती है जब स्टे आर्डर लाने पर साँसों के लाले पड़ते हैं जब आंदोलन को कुचलने को सलाखें धमकाती हैं जब जमीन बचाने को धरती माँ ही दाँव पर लग जाती है जब मुखिया के […]
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