ब्रजमोहन शर्मा
कल्पना कीजिये कि होली खेलने के बाद आपकी त्वचा में निखार और बालों में चमक आ जाये। पर क्या ऐसा होता है ? लोग होली खेलते तो उत्साह से हैं, मगर खेलने के बाद रंगों से छुटकारा पाना एक दुःस्वप्न की तरह हो जाता है। बाजार में बिकने वाले होली के अधिकतर रंग धातु के आक्साइड, औद्योगिक रंग व इन्जन आॅयल से मिलकर बने होते हैं।
वैज्ञानिक संस्था ‘स्पैक्स’ साल दर साल होली के रंगों में मिलावट के खतरे से समाज को जागरूक करती है। वर्ष 2014 की होलियों के दौरान ‘स्पैक्स’ ने देहरादून के विभिन्न स्थानों जैसे धामावाला, पल्टन बाजार, हनुमान चैक, मोती बाजार, करनपुर, डाकरा, काँवली रोड, पटेलनगर, माजरा, पंडितवाडी, प्रेमनगर, कारगी, सहस्त्रधारा, रायपुर, जाखन, राजपुर तथा किशननगर आदि स्थानों से रंगों के 100 से अधिक नमूने लिये, जिनका परीक्षण करने पर इन रंगों में घातक धातुओं का सम्मिश्रण पाया गया।
प्रयोगशाला में पाया गया कि हरे रंग में मैलेचाइट ग्रीन व काॅपर सल्फेट, बैंगनी रंग में क्रोमियम आयोडाइड, सिल्वर रंग में एल्मुनियम ब्रोमाइड, काले रंग में लेड अक्साइड, पीले रंग में मेटनिल येलो तथा लाल रंग में रोहडामिन बी व मरक्यूरिक सल्फाइट मौजूद थे। ये सभी घातक रसायन हैं, जिनके प्रयोग से त्वचा रोग, आँखों में जलन, अन्धापन, कैंसर आदि का खतरा बना रहता है। धोने पर ये जल व मिट्टी को भी प्रदूषित करते हैं। अचरज की बात तो यह रही कि जो रंग ‘आॅर्गेनिक’ के नाम से बिक रहे थे, उनमें से भी 60 प्रतिशत में मिलावट पाई गई।
देहरादून में पिछले साल पाँच सौ से अधिक होलिकाओं का दहन हुआ। एक स्थान पर 500 से 1000 किलो. लकड़ी जली होगी। इस प्रकार होलिका दहन के नाम चार लाख किलो. लकड़ी, जिसका बाजार मूल्य दस लाख रुपये से अधिक होगा, होलिका दहन के नाम पर स्वाहा हो गया। एक ग्रामीण परिवार अपना खाना बनाने हेतु एक दिन में लगभग चार किलो लकड़ी का प्रयोग करता है। अर्थात् इतनी लकड़ी से 15,493 परिवारों का एक दिन का चूल्हा जल सकता था। इसी तरह अनुमान है कि इस होली में नहाने के रूप में लगभग चार करोड़ लीटर पानी, जिसमें घातक घातु मिले हुए थे, मिट्टी एवं जलस्रोतों में समाया होगा।
होली के अवसर पर एक दूसरे का मुँह मीठा कराये जाने की परम्परा है। घरों में विशेष तौर पर पकवान बनाये जाते हैं। ‘स्पैक्स’ के सर्वे में यह भी मालूम पड़ा कि इन पकवानों में प्रयोग होने वाले मावा व मैदा में भरपूर मिलावट थी। 25 नमूनों में से 18 नमूनों में मिलावट पाई गई। सात नमूने नकली मावे के थे, जिनमें यूरिया, डिटरजेंट, अरारोट व रिफाइंड तेल मिलाया गया था।
अतः होली खेलें जरूर, मगर कुछ सावधानियाँ अवश्य बरत लें। होली के दिन सुबह ही अपने शरीर पर नारियल का तेल या क्रीम अवश्य लगा लें। इससे रंगों का टाॅक्सिन त्वचा के भीतर नहीं घुसेा तथा बाद में रंगो को धोने में भी आसानी होगी। सिर की त्वचा को बचाने के लिये अपने बालों में भी तेल लगायें, ताकि रंगों की डाई आपके बालों को नुकसान न पहुँचाये। ऐसे वस्त्र पहनें जो आपके शरीर के ज्यादा से ज्यादा भाग को ढँक कर रखें। पूरे बाजू की शर्ट और पेन्ट के साथ जुराब पहन लें। धूप के चश्मे का प्रयोग करें। यदि रंग आँखों में चला गया हो तो खूब पानी के छींटे मारें। प्राकृतिक व हर्बल रंगों से ही होली खेलें। होली खेलने के दौरान बार-बार अपना मंुँह पानी से न धोयें। इससे त्वचा को नुकसान पहुँच सकता है। रंग छुड़ाने के लिये हल्के गर्म पानी का प्रयोग करें। रंग लगने से त्वचा सूखी हो जाती है। अतः माॅस्चराइजर का प्रयोग करें। यदि कोई रंग न छूटे तो उसे दही व बेसन के लेप से छुड़ायें।
होली से एक सप्ताह पहले से फेशियल, थ्रेडिंग या वैक्सिंग आदि न करवायें। आंँख, कान, नाक या खुले घाव पर रंग न लगने दें। गीले फर्श पर न भागें, आप फिसल सकते हैं। सिंथेटिक रंग न खरीदें। तला-भुना भोजन व मिठाई न खाएँ, इनसे त्वचा पर फंुसिया निकल सकती हैं। रंगो को सूँघे नहीं, साँस लेने में गतिरोध पैदा हो सकता है। यदि आपने भाँग या शराब पी हो तो गाड़ी कदापि न चलायें। यदि भांग का नशा चढ़ जाये तो मीठा व चाय आदि प्रयोग लगभग 6 घंटे तक कदापि न करें, इनसे नशा और अधिक हो जायेगा।
होली के रंग आप घर पर ही बना सकते हैं। हरे रंग के लिये मेंहदी का प्रयोग करें। शुद्ध मेंहदी का आँवले के साथ मिश्रण कर भूरा रंग बनेगा। सूखी मेंहदी आपके चेहरे पर रंग नहीं छोडे़गी व गुलाल के स्थान पर इस्तेमाल की जा सकती है। यदि इस मेंहदी को पानी के साथ मिलायेंगे तो वह आपके चेहरे पर हल्का सा रंग छोड़ेगी। गुलमोहर की हरी पŸिायों को पीसकर भी हरा रंग बनाया जा सकता है। पोदीना, पालक, धनिया पीसकर पीला रंग पानी के साथ बनाया जा सकता है। हल्दी तथा बेसन मिलाकर बनाया जा सकता है तथा उबटन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। कस्तूरी हल्दी का प्रयोग करें, जो खुशबूदार भी है। उसमें उपचारात्मक गुण भी होते है। बेसन में मुल्तानी मिट्टी का पाउडर भी डाल सकते हैं। पीले रंग के लिये अमलतास के फूल, गेंदा तथा पीले रंग की गुलदावरी के फूल भी प्रयोग में लाये जा सकते हैं। इन्हें पानी में भिगोकर रखें तथा उबाल कर रात भर के लिये छोड़ दें। लाल रंग लाल चन्दन पाउडर का प्रयोग कर बनायें।ं अनार के छिलके पानी में उबालने से, बुरांश के फूलों से अथवा लाल गाजर तथा टमाटर के रस को निकाल कर भी लाल रंग बनाया जा सकता है।
नीला रंग नील के पौधे पर लगने वाली बेरियों को पानी में मिलाकर बना सकते हैं। चुकन्दर को काट कर उसे एक लीटर पानी में भिगो देने से सुन्दर मजेन्टा रंग बनता है। उसे उबाल कर छान ले। कचनार के फूल पानी में रात भर भिगोंये तथा उबाल लंे। इससे अच्छा गुलाबी रंग प्राप्त कर सकते हैं। टेसू या पलाश के फूल रात भर पानी में भिगोकर रखने तथा फिर उबालने से बढि़या केसरिया रंग बनता है। पारम्परिक होली में टेसू के फूलों का अपना ही महत्व है। भगवान कृष्ण ने भी टेसू के फूलों से होली खेती थी। टेसू का फूल मार्च में माह में ही खिलता है। इसमें कई औषधीय गुण भी हैं। हरसिंगार के फूलों को पानी में भिगोने से नारंगी रंग मिलता है।
केसर पानी में भिगोकर कुछ घन्टों के लिये छोड़ दें तथा बाद में पीस लें। महंगा है पर त्वचा के लिये बेहद अच्छा है। भूरे रंग हेतु कत्थे को पानी में मिलायें। चाय या काफी को पानी में मिला कर भी भूरा रंग बनाया जा सकता है। सूखा आँवला पानी में रात भर भिगाकर भूरा रंग बन सकता है।