सम्पादकीय

From Editor’s Desk (संपादक की कलम से)

सम्पादकीय

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देश लगातार नाकामयाबियों, बल्कि विघटन की ओर जा रहा है और हम देशवासी हैं कि चैन की वंशी बजा रहे हैं। ऐसा क्यों ? ऐसा इसलिये क्योंकि हमारे दिमाग में यह भर दिया गया है कि जो कुछ हो रहा है, वह सब हमारे भले के लिये है। नोटबन्दी को लें। अधिसंख्य लोगों को यह […]