दिल्ली में ‘आम आदमी पार्टी’ की ऐतिहासिक जीत से इस निष्कर्ष पर पहुँच जाना कि भाजपा, कांग्रेस मार्का राजनीति खत्म होने जा रही है और राजनीति में शुचिता तथा स्वच्छता की शुरूआत हो गई है, बेहद जल्दबाजी होगी। हाँ, यह कहा जा सकता है कि आम आदमी के विकास के सपने चकनाचूर हो गये हैं, रोजगार के संकट के खतरे उसे बहुत साफ-साफ दिखाई देने लगे हैं। कुल मिला कर पिछले बीस साल से चल रहे आर्थिक उदारीकरण की परिभाषा वह भले ही न जानता हो, उसके विकास के माॅडल का मर्म उसके समझ में आ गया है। इसलिये अब उसकी लड़ाई ‘जैसा है, जो है, उसी में कुछ राहत तो दो’ की स्थिति में आ गई है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने इस सच्चाई को महसूस किया और बिजली, पानी, वाईफाई, अवैध बस्तियाँ, भ्रष्टाचार जैसे मामलों को बहुत कुशलता से मुद्दों में परिवर्तित कर एक अनुशासित और संगठित स्वयंसेवकों की फौज के जरिये धैर्य और मेहनत से जबर्दस्त अभियान चला कर दिल्ली के वोटर के हृदय में इतनी मजबूती से स्थापित कर दिया कि अरबों रुपये खर्च कर दर्जनों मंत्रियों और सैकड़ों सांसदों के साथ प्रधानमंत्री को भी चुनाव प्रचार में झोंक देने वाले भव्य आयोजनों के माध्यम से किये जाने वाले प्रचार के बावजूद वह मुद्दा जनता के दिल दिमाग में अड़ा रहा। आम आदमी पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र कब और कैसे साकार होगा, यह एक अलग बहस का विषय है। मुख्य राजनीतिक दलों चरित्र के उलट यह पार्टी काम करने के लिये ही सत्ता में आई है, अपने नेताओं को करोड़पति बनाने के लिये नहीं। मगर इससे बड़ा सवाल यह है कि इसकी सफलता से जो उत्साह देश के कोने-कोने में पहुँचा है, वह कब और कैसे बदलाव की लड़ाई में रूपान्तरित होगा। दिल्ली एक छोटा और सघन आबादी वाला क्षेत्र है, जबकि यह देश अत्यन्त विराट और सांस्कृतिक विविधता वाला। अतः देश के हर हिस्से के लिये स्थानीय मुद्दे टटोल कर उसी उत्साह, मेहहनत और संगठित ताकत से लड़ाई को आगे बढ़ाना होगा।
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जनमबार अंक -15
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