1. तब फोन करने के लिए भी तारघर जाना पड़ता था। एक शहर से दूसरे शहर में रहने वाले मित्र को फोन मिलाने के लिए फोन ऑपरेटर की बार-बार चिरौरी करनी पड़ती थी और उसकी कृपा होने पर ही बात हो पाती थी। इसमें भी कई बार फोन मिलने की प्रतीक्षा में पूरा दिन तारघर या डाकखाने की बैंच में ऊँघते हुए बीत जाता था।
2. रेडियो का लाइसेंस लेना अनिवार्य था। बिना लाइसेंस के रेडियो का उपयोग गैर कानूनी था।
3. हाथ में घड़ी पहने होना बड़ी शान की बात समझी जाती थी। अक्सर लोग फोटो खिंचवाते समय हाथ ऐसे रखते थे कि फोटो में घड़ी अवश्य दिखाई दे।
4. ट्रांजिस्टर का आविष्कार क्या हुआ कि उसको कंधे पर लटका कर चलना फैशन और सभ्य होने का प्रतीक बन गया था।
5. तब सोने का मूल्य 150 रु. से 240 रु. प्रति तोला के बीच लेकिन एक ब्रांडेड वाच का मूल्य कम से कम 250 रु. था।
6. चपरासी का वेतन 35 रु. बाबू का 85 रु. द्वितीय श्रेणी अधिकारी का 250 रु. और प्रथम श्रेणी के अधिकारी का वेतन 550 रु. से आरंभ होता था।
7. दफ्तरों में काम करवाने के लिए एक रुपये की घूस से भी काम चल जाता था।
8. वर्ष भर में कुल तीन हजार रुपये वेतन पाने वाला कर्मचारी भी आयकर के दायरे में आता था।
9. बसों में अपर और लोअर दो दर्जे होते थे। अपर का किराया लोअर के किराये का डेढ़ गुना होता था। अपर में यात्रा करना सम्पन्न होने का प्रमाण माना जाता था।
10. ट्रेनों में चार क्लास होते थे. फर्स्ट, सेकिंड, इंटर और थर्ड।
11. हल्द्वानी से नैनीताल का बस भाड़ा दो रुपया 60 पैसा और टैक्सी का भाड़ा 4 रुपये था।
12. सिनेमा का न्यूनतम टिकट 35 पैसे और अधिकतम 4 रु. पचास पैसा हुआ करता था.
13. नैनीताल में बिना बिजली वाला सामान्य आवास या बंगलों के आउट हाउस 5 रु. प्रति माह किराये पर मिल जाते थे। सीजन के बाद होटलों में 30 रुपये प्रति माह पर आवास सुलभ थे।
14. पचास पैसे के पचास ग्राम काजू आ जाते थे।
15. स्कूलों में हाईस्कूल स्तर पर शिक्षण शुल्क 4 रु. 50 पैसा प्रति माह और इंटर में 8.75 रु. प्रति माह थी।
16. बी.डी पांडे अस्पताल के मुख्य चिकित्सक डा. भारद्वाज को घर पर दिखाने की फीस 5 रु. थी और ऐसा करने वालों को अस्पताल मे विशेष सुविधाएँ मिलती थीं।
17. एक सरकारी कर्मचारी के लिए अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में 10 दिन का कुल परिव्यय 15 से बीस रुपये के बीच आता था।