वर्ष 40:अंक 24 II 1- 15 अगस्त 2017
लुप्त हुई ऐतिहासिक स्मृतियों को पुनर्सृजित करने की खातिर
प्रयाग जोशी डीडीहाट के भाष्कर स्वामी के बैकुंठधाम आश्रम में पहुँच कर सीराकोट का ऐतिहासिक परिदृश्य दिमाग में कौंध जाता है। जब छनपटा की निर्जल पहाड़ी के ऊपर वह आश्रम बन रहा था, मुझे उधर से होकर सीराकोट जाने के अनेक मौके मिले थे। आज, स्वामी जी के अनुयायियों की उगाई हुई सघन बनाली मे […]
देवरा फिर कब लेक आला
प्रयाग जोशी होली के लोक गीत प्रमुखतः भक्ति के आधार हैं पर रति-विरति के गहन संवेदनों के साथ-साथ वे ठ्ठठा-चुहल, छेड़-छाड़, स्वांग मसखरी आदि कौतुकों के जरिये हास्य का उद्रेक भी करते हैं। उनमें व्यंग्य भी होता है। लोक के मानस की कुण्ठा और दमित वृत्तियों के उद्घाटन के लिये उनमें किसम-किसम की अन्योन्क्तिायां, दृष्टांत, […]
सामाजिक अतियों को तोड़ने के लिए आती है होली
प्रयाग जोशी होलियाँ काम की क्रीड़ा-कौतुग के राग-रस-रंग की मौज लेने के दिन हैं। पशु-पक्षियों, सरीसृपों और जलचर आदि जीवों की तरह ही आदमी अपने को नर और स्त्रियाँ अपने को मादा समझ कर कामातुरता से होली उत्सव की धारणा को बेहतर समझ सकते हैं। आदमी और औरत के परस्पर दरस-परस, प्यार-मनुहार, लल्लो-चप्पो करके गुदगुदाने, […]
हर फूलन मथुरा छाइ रही
धरती में विलीन हो चुकी पुनर्नवा और पटांगण की भीड़ी से लगा दाड़िम पलुराने लगा हैं। बाड़े को भर कर हरियाया ओलमारा नीलम जैसे नन्हे-नन्हे फूलों में फूलने लगा है। चलमोड़े से भरी पगडंडियों की मेड़ों पर नथ के चंदकों जैसे विविध नगीनों सरीखे फूलों से अपनी पहचान जना रहे हैं शंखपुष्पी और भृंगराज। जहाँ […]
मामूली आदमी की आत्मकथा
आत्मकथा उस एक नितांत अकेले आदमी की भी हो सकती है, जो कोशिश तो करता रहा परन्तु अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो सका। इसे सिद्ध कर दिखाया है जनार्दन पन्त ने। पिथौरागढ़ जिले के हलपाटी गाँव के मूलनिवासी जनार्दन पंत हल्द्वानी में रहते हैं। वंशजात वे पुराने कांग्रेसियों के हैं। 1921 के बागेश्वर में […]
बहुत बड़ा शून्य छोड़ गया है डॉ. डी. डी. शर्मा का निधन
16 मार्च को पद्मश्री डॉ. डी.डी. शर्मा का 87 वर्ष की आयु में देहान्त होने से देश ने एक उद्भट भाषाविद खो दिया। 24 अक्टूबर 1924 में नैनीताल जिले की नौकुचियाताल झील के निकट जंगलिया गाँव में पैदा हुए देवीदत्त शर्मा अपने पाँच भाइयों में चौथे नम्बर के थे। तीन वर्ष की उम्र में उनके […]
पनघट पर छयल चलो बरछी
होली को कामकाका के अगियाये हुए जीवन का ‘इजर’ समझना चाहिये। पाँच दिनों में फाँणा, काटा, सुखाया और जलाया। इस ऊखड़ मल्याट में रतिकाकी को भी साथ रहना पड़ता है। जिस समय आग धमकी होती है उस समय वह हाथ में हाथ धरे तमाशा नहीं देखती। पानी-पन्यार, नदी-पनघट की सोचती है। आग और पानी के […]
चाँचरी धमाको के बहाने लोक की चर्चा
हिन्दी की बोलियों में, लोक साहित्य की विभिन्न विधाओं के संकलन और अध्ययन में देवेन्द्र सत्यार्थी, राहुल सांकृत्यायन, बनारसी दास चतुर्वेदी, वासुदेवशरण अग्रवाल जैसे लेखकों का योगदान उल्लेखनीय है। कुमाउँनी और गढ़वाली के लोक साहित्य टटोलने- थाहने की ओर पहले पहल लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, नृवंश शास्त्री डॉ. धीरेन्द्र मजूमदार का ध्यान गया। संयोग से […]
आपत काल बिरस भयो फागुन… …उचित होय सो की जै
बोनासाही आमों व देसी लीचियों में बौर आ गई हैं। लाई-सरसों, मूली और धनियाँ के फूलों से घरबाड़े और खेत भरे हुए हैं। तोतों और गोंतालों की चहचहाहट से यूक्लिप्टस का पेड़ चारबाग स्टेशन की तरह शोरियाया हुआ है परन्तु कोयल नहीं दिख रही। हेमंत में, काले कौवों और कोयलों के झुण्ड बाबा रामदेव के […]
उत्तराखण्ड की एक और प्रतिभा पद्मश्री से सम्मानित
हल्द्वानी के नवाबी रोड स्थित आनन्दधाम निवासी 86 वर्षीय डॉ. डी.डी. शर्मा को इस वर्ष पद्मश्री के अलंकरण से सम्मानित किया गया है। 2011 के वर्ष इस सम्मान से नवाजे गए, उत्तराखण्ड के वे अकेले व्यक्ति हैं। उन्हें अलंकृत होने की खबर से जम्मू कश्मीर से लेकर अरुणाचल तक फैले हुए हिमालयी राज्यों के कलमजीवियों […]
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