वर्ष 40:अंक 24 II 1- 15 अगस्त 2017
अब नहीं होगा कविता पोस्टरों के बीच उनका मुस्कराता चेहरा
गोविन्द पंत ‘राजू’ पिछले 27-28 वर्षों में उमेश डोभाल स्मृति समारोह के कार्यक्रमों में एक-दो मौके ही शायद ऐसे रहे होंगे, जब समारोह के दौरान कार्यक्रम स्थल में लगे कविता पोस्टरों और मिनिएचर चित्रों की प्रदर्शनी के साथ बी. मोहन नेगी का मुस्कुराहट भरा ऊर्जावान चेहरा मौजूद न रहा हो। हर दर्शक की जिज्ञासाओं का […]
वादे से मुकर कर यों कैसे चला गया तू ?
गोविन्द पंत ‘राजू’ शाम के वक्त मोबाईल की घंटी आशकाएँ नहीं जगातीं। कोटद्वार से सत्या भाई का फोन था, सवा छह बजे के आसपास। लेकिन इस फोन ने स्तब्ध कर दिया। वज्रपात हो गया हो जैसे। ‘‘भाई साहब भयानक खबर है। कमल भाई ने सुसाइड कर लिया है।’’ इससे ज्यादा न बताने को कुछ था […]
उम्मीदों का अम्बार है मुख्यमंत्री पर
गोविन्द पंत ‘राजू’ इस बार उत्तराखण्ड का जनादेश भी उत्तर प्रदेश की ही तरह रहा। अन्य कई सारे मुद्दों के साथ साथ उत्तराखण्ड में भी जनता ने हरीश रावत की भ्रष्ट सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए वोट किया। राज्य की स्वयंभू प्रगतिशील राजनीति आपसी मनभेद न मिटा पाने के कारण एक बार फिर बुरी […]
रघुनन्दन सिंह टोलिया: संवेदनशील प्रशासक व उत्तराखंड के हितैषी
गोविन्द पंत राजू एक प्रशासनिक अधिकारी होते हुए भी जिनके मन में आम लोगों की तरह उत्तराखण्ड की चिन्ता खदबदाती रहती है, आर. एस. टोलिया वैसे लोगों की लगातार कम होती जा रही जमात में से एक थे। लगभग तीस वर्ष पूर्व लखनऊ में एक सामाजिक कार्यक्रम के दौरान जब उनसे पहली बार मुलाकात हुई […]
उस पर्चे ने मेरी जिन्दगी बदल दी
गोविन्द पन्त ‘राजू’ वो तल्लीताल केे पोस्ट आफिस की दीवार पर लगा एक पैम्फ्लैट था जिसने मेरी जिन्दगी की धारा बदल दी। पत्रकारिता और लेखन का कीड़ा मन में कहीं न कहीं था तो जरूर, तभी तो इण्टर कालेज की वार्षिक पत्रिका में छात्र संपादक बनने का मौका मिला होगा। मगर पत्रकारिता ही भविष्य बन […]
यह तो राजनैतिक प्रहसन का मध्यांतर है
सुप्रीम कोर्ट के संतुष्ट हो जाने के बाद हरीश रावत फिर से उत्तराखंड में बहुमत वाली सरकार के मुखिया हो गए हैं। शीर्ष अदालत ने मान लिया कि 10 मई को विधानसभा में हुए मतविभाजन में कोई अनियमितता नहीं हुई और हरीश रावत के पक्ष में 33 तथा बीजेपी के पक्ष में 28 वोट पड़े। […]
अलविदा 2015
अलविदा सारे दुख दर्द सारे गिले शिकवे नफरत और गम अलविदा एकाकीपन अलविदा अवसाद अलविदा अंधियारा, धुंध और कुहासा अन्दर का, बाहर का अलविदा पीड़ा तन की, मन की, सारे जग की अलविदा 2015 अलविदा भूख, अलविदा भय अलविदा युद्ध, अलविदा असुरक्षा अलविदा धरती के सारे प्रकोप अलविदा घृणा आदम की, जात की, धरम की […]
वीरेन दा के लिये
थामी तो नहीं मगर अंगुली पकड़े रहने का कराया हमेशा अहसास और चलना सिखा दिया एक छायादार, हजार शाखों वाले फलदार वृक्ष थे तुम न जाने कितनी लताएँ पाकर तुम्हारा सहारा छू गईं अपने अपने आसमान और जुड़ी भी रहीं अपनी जमीन से बाह्य आचरण की तमाम अराजकताओं के बावजूद पता नहीं कितनों ने लिया […]
पत्रकारिता से मिशनरी भावना लुप्त हो गयी है…
वे दिन भी क्या दिन होते होंगे जब खबरों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचने में हफ्ते लग जाते होंगे। मगर उस दौर में भी अखबार छपने लगे थे और जबर्दस्त उत्साह तथा जोश के साथ समाज को खबरें देने और जागरूक करने का काम कर रहे थे। योँ तो भारत में पत्रकारिता की […]
ओ प्रकृति…..
तुमने ये क्या कर डालाबेगुनाहों -बेजुबानों के खिलाफकिस लिए कर डालाइतना बड़ा गुनाहपता नहीं यह तुम्हारा गुस्सा था या फिर नाराजगी या विरोध का तरीका कोई तुम्हारी बेबसी तो नहीं हो सकती यह गिर्दा कहता था पानी से धारदार कोई औजार नहीं होता और तुमने दिखा ही दियाअपने इस ब्रह्मास्त्र का तांडव इसकी ताकत का […]
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