शंम्भू राणा

घास छिलने को ‘कुछ न करने’ का प्रतीक समझना ठीक नहीं

पिछले दिनों टिहरी जिले में आयोजित हुई घसियारी प्रतियोगिता की खबरें पढ़ते हुए मुझे कई साल पहले एक ग्रामीण महिला के मुँह से सुना आधा-अधूरा सा वाक्य अनायास ही याद हो आया। वह उम्रदराज महिला कह रही थी, ‘अब मैं क्या जानूँ, ये तो मर्दों का मामला ठहरा, मैं ठहरी बेवकूफ औरत जात…’ अपनी तीन […]

मोद्दा अब मेमोरी कार्डों में ही होंगे

  लेखक: शम्भू राणा एक थे मोद्दा। बेतरतीब और उलझे हुए दाढ़ी-बाल, पोपला मुँह, फटे-पुराने जूते, जो कई बार अलग-अलग साइज और रंग के भी होते थे। तन पर दो-दो, चार-चार पैंट-कमीजें एक के ऊपर एक, हाथों में ढेर सारी पत्रिकाओं, आधे-अधूरे, नए-पुराने अखबारों का पुलन्दा। पिछले दिनों एक अन्दाजे के मुताबिक 80 से ज्यादा […]