केशव भट्ट
होली त्यौहार को पारंपरिक तरीके से मनाने के लिये अब आप्रवासी ज्यादा उत्साह में रहते हैं। जैसे गाँवों के उजड़ने से वहाँ होलियाँ भी खत्म हुईं, मगर वहाँ से विस्थापित ग्रामीण जिन नगरों, कस्बों में जाकर बसते हैं, वहाँ अपनी होली जमाने की कोशिश करते हैं। उसी तरह विदेशों में अपनी जमीन की माटी की नराई/खुद में रहने वाले विदेशी आप्रवासी अपनी संस्कृति के प्रति स्वदेश में रहने वालों से ज्यादा उत्साहित रहते हैं। रंग और उल्लास के इस पर्व को विदेशों में मनाये के समाचार प्रायः मिलते रहते हैं।
बैठकी व खड़ी होली को रागमय तरीके से मनाने के लिए उत्तराखंडी आप्रवासियों की जरूरत को देखते हुए खड़ी व बैठकी होली की दो किताबें प्रकाशित हो गई हैं। संगीत के प्रोफेसर डाॅ. पंकज उप्रेती ने उत्तराखंड की होली पर ये दो किताबें, ‘खड़ी होली आॅफ कुमाऊँ’ तथा ‘क्लासिकल होली आॅफ कुमाऊँ’ तैयार की हैं। ये दिनों किताबें amazon.com पर उपलब्ध हैं।