राजीव लोचन साह
89 वर्ष की आयु में श्री विश्वम्भर नाथ साह ‘सखा’ के देहान्त के साथ नैनीताल के समाज, संस्कृति और कला का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त हो गया है। उनका व्यक्तित्व अविश्वसनीय रूप से बहुआयामी था और वे अद्भुत मेधा के स्वामी थे। किसी व्यक्ति का एक से अधिक विधाओं में पारंगत होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। परन्तु एक साथ संगीत, चित्रकला, ऐपण, रंगकर्म, सिनेमा, तंत्र शास्त्र, वास्तुकला, राजनीति, जनान्दोलन, मुक्केबाजी और शिकार आदि पर दखल रखने वाला व्यक्ति हमें सखा के अलावा और कोई नहीं दिखाई दिया। इन विविध विषयों पर उनकी जानकारी मात्र शौकिया या प्रारम्भिक नहीं थी, बल्कि इनमें वे दक्ष थे। विकसित और सर्वव्यापी मीडिया के कारण राजधानियों अथवा महानगरों में औसत दर्जे की प्रतिभायें भी चर्चित हो जाती हैं। मगर विश्वम्भर नाथ साह ‘सखा’ को वह मान्यता नहीं मिली, जिसके वे हकदार थे। शांति निकेतन में चित्रकला के अध्ययन के बाद मिनियेचर आर्ट के अध्ययन के लिये जापान जाने का मौका माँ का स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण उनके हाथ से क्या छूटा कि राष्ट्रीय फलक से उनका नाता ही टूट गया। उनकी जिन्दगी नैनीताल तक ही सीमित रह गई। वे अच्छे लेखक भी हो सकते थे। कुमाउनी ऐपण पर उनके द्वारा लिखी गई किताब इस विषय पर एक मानक है। मगर अपने पाण्डित्य को कागज में उकेरने में उन्होंने आलस्य किया। विभिन्न संगीतज्ञों के साथ होने वाली उनकी अनन्त बहसें किताबों का रूप लेकर उत्तर भारत के शास्त्रीय संगीत को समृद्ध कर सकती थीं। हालाँकि उनके अन्तिम वर्षां में उनकी छिटपुट वीडियो रिकॉर्डिंग की गई। मगर वह पर्याप्त नहीं है। साठ के दशक में उनके द्वारा बनाइ गई ‘तवांग से वापसी’ व अन्य फिल्में तो उपलब्ध ही नहीं हैं। मगर एक ट्रस्टी के रूप में उनके द्वारा किया गया नयना देवी मन्दिर का कायाकल्प तथा उत्तराखंड आन्दोलन के शहीदों की स्मृति में बने शहीद स्मारक पर स्थापित, उनके द्वारा परिकल्पित मूर्ति हमेशा उनकी याद दिलाती रहेगी।