संजय चौहान
शिव और पार्वती के विवाह स्थल का साक्षी उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जनपद की केदारघाटी में स्थित त्रिजुगीनारायण मंदिर, वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में लोगों की पहली पसंद बन रहा है। पिछले पांच सालों में यहाँ 100 से अधिक दंपत्ति नें अपने वैवाहिक जीवन के सात फेरे इसी मंदिर की अंखड धूनी के सामने लिये और एक दूसरे के बन गये। यहाँ शादी करने उत्तराखंड ही नहीं बल्कि पूरे देश की जानी-मानी हस्तियों सहित सात समंदर पार विदेशी भी पहुंचे। त्रिजुगीनारायण मंदिर, वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में लोगों की पहली पसंद बनने से न केवल देश के कोने-कोने से लोग यहाँ पहुँच रहे हैं अपितु स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के अवसर भी मिल रहें हैं।
रंग लाई पहल, साकार हुआ रंजना रावत का सपना!
त्रिजुगीनारायण मंदिर को वेंडिग डेस्टिनेशन के रूप में प्रमोट करने का आइडिया सर्वप्रथम गढ़ माटी संगठन की संस्थापक रंजना रावत का था। रंजना का मानना था की शिव पार्वती के विवाह स्थल की पावन भूमि त्रिजुगीनारायण को वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में विश्व में अपनी अलग पहचान बनाये। वेडिंग डेस्टिनेशन के जरिए धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिले, स्थानीय लोगों को रोजगार और हमारी लोकसंस्कृति को नयी पहचान। रंजना कहती हैं कि उन्होंने आज से पांच साल पहले जो सपना देखा था आज वो धरातल पर साकार होता दिखाई दे रहा है। आज त्रिजुगीनारायण में स्थानीय लोगों नें अपनी छोटी छोटी दुकानो की जगह बडी बडी दुकानें, तीन-तीन, चार चार कमरों के लाॅज व होमस्टे बना दिया है जिससे लोगों के पास रोजगार के अवसर बढें है। स्थानीय लोगों नें टैंट का व्यवसाय व खाने पीने के लिए अच्छे होटल भी खोल दिए हैं। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि त्रिजुगीनारायण को वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में पहचान मिलने से वहां के लोग आर्थिक रूप से समृद्ध हुये है अपितु लोगों को अपने ही घर में रोजगार के अवसर सृजित हुयें है। आज त्रिजुगीनारायण में स्थानीय लोगों के साथ साथ कई लोग शादियां करा रहें हैं।
रंजना कहती हैं कि यहां जो भी शादियां होती हैं वे विधि विधान, पौराणिक रीति रिवाज, परम्पराओ और गढ़वाल की लोकसंस्कृति को ध्यान में रखकर होती है ताकि लोगों को विवाह की रस्मों और गढ़वाल की सांस्कृतिक विरासत के बारे मे जानकारी मिले। यहां परम्परागत वाध्य यंत्र ढोल दमाऊ और मशकबीन में शादी सम्पन्न की जाती है जबकि मंगलेर महिलाओं द्वारा गाये जाने वाले मांगल गीत शादी में चार चाँद लगा देते हैं। आजकल शहरों में होने वाली शादियों मे दिखावे के लिए लाखों रूपये पानी की तरह बहाये जाते हैं जबकि त्रिजुगीनारायण वेडिंग डेस्टिनेशन में बेहद सादगी से विवाह संपन्न कराये जाते हैं।
त्रिजुगीनारायण मंदिर की ये है धार्मिक मान्यता!
मान्यताओं के अनुसार रूद्रप्रयाग जनपद के मैखंडा परगने में मंदाकिनी क्षेत्र के मंदाकिनी सोन और गंगा के मिलन स्थल त्रिजुगीनारायण मंदिर में शिवरात्रि के पवित्र दिन भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था। भगवान शिव के विवाह को लेकर कई तरह की कथाएं अलग-अलग धर्म ग्रंथों में प्रचलित हैं। माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह का प्रमाण है यहां जलने वाली अग्नि की ज्योति जो त्रेतायुग से निरंतर जल रही है। कहते हैं कि भगवान शिव ने माता पार्वती से इसी ज्योति के सामने विवाह के फेरे लिए थे। तब से अब तक यहां अनेकों जोड़े विवाह बंधन में बंधते हैं। लोगों का मानना है कि यहां शादी करने से दांपत्य जीवन सुख से व्यतीत होता है। इससे सौभाग्य की उम्र लंबी रहती है और जीवनसाथी के साथ बेहतर तालमेल बना रहता है।
मंदिर परिसर में मौजूद है कुंड!
इस मंदिर में स्थित कुंड के बारे में मान्यता है कि विवाह संस्कार कराने से पूर्व भगवान विष्णु ने इसी कुंड में स्नान किया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता-पार्वती और भगवान शिव के विवाह में भगवान विष्णु ने माता पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी और भाई द्वारा बहन की शादी में की जाने वाली सभी रस्में भगवान विष्णु ने ही पूरी की थीं।
त्रेतायुग की जलती धूनी!
इस मंदिर में स्थित हवन कुंड में हर समय अग्नि जलती रहती है। इस अखंड ज्योति के बारे में कहा जाता है कि यह उसी समय से जल रही जब शिव-पार्वती के फेरे हुए थे। इस मंदिर में दर्शन करने आनेवाले भक्त इस कुंड की राख (भस्म) को अपने साथ प्रसाद रूप में घर ले जाते हैं और शुभ कार्यों के दौरान इसका टीका लगाते हैं।
शिव पार्वती के विवाह में सम्मिलित हुये थे ऋषि-मुनि!
त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी। यहां शिव पार्वती के विवाह में समारोह में सभी संत-मुनियों ने भाग लिया था। विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहम शिला कहा जाता है जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है। विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्रकुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहते हैं। इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है। सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका से हुआ था और इसलिए ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है।
ऐसे पहुंचे त्रिजुगीनारायण!
त्रिजुगीनारायण मंदिर सोनप्रयाग से 12 किमी की दूरी पर स्थित है। जबकि रूद्रप्रयाग से लगभग 80 किमी की दूरी पर है।