संजय चौहान
सुमित की ‘कल्पनाओं’ नें भरे गांव की दीवारों पर खुशियों के रंग, लाॅकडाउन में खिलखिलाने लगी अरखुंड की गलियाँ
जीवन में रंगों का महत्व किसी से छुपा नहीं है। हम रंगों के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। रंगों के बिना हमारा जीवन ठीक वैसा ही है, जैसे प्राण बिना शरीर। रंग उल्लास, खुशी, समृद्धि और कामयाबी का प्रतीक होते हैं। हर कोई इन रंगों में सराबोर रहना चाहता है। जीवन में रस घोलते ये रंग बेशकीमती है और इसलिए इन्हें जितना हो सके उतना बांटे, जिससे दूसरों की ज़िन्दगी में भी खुशियों के रंग भर सकें। जी हां ये करके दिखलाया है उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जनपद के जखोली ब्लाॅक के अरखुंड गांव निवासी होनहार युवा सुमित राणा नें । इन दिनों अरखुंड गांव लोगों के मध्य वाल पेंटिंग के कारण चर्चाओं का केन्द्र बना हुआ है।
लाॅकडाउन में जहां चारों ओर निराशा का भाव फैला हुआ है वहीं सुमित नें रंग और कूची से अपने गांव की दीवारों को अपनी कल्पनाओं के रंग से जगमग कर दिया है। जिस कारण आजकल गांव की दीवारें आपस में एक दूसरे से गुफ्तगु करनें लगी है और खिलखिलाने लगी है। सुमित की इस सराहनीय पहल में साथ दे रहें हैं अरखुंड गांव के नवयुवक संघ के प्रतिभाशाली युवा, जो इन दिनों लाॅकडाउन की वजह से गांव में ही हैं। लाॅकडाउन के दौरान सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुये अरखुंड गांव के युवा दीवारों को वाल पेंटिंग के जरिये चार चाँद लगा रहें हैं।
— कौन हैं सुमित राणा और कहाँ है अरखुंड गांव!
सुमित राणा रूद्रप्रयाग जनपद के अरखुंड गांव के निवासी हैं। अरखुंड गांव 26 / 11 मुंबई हमले में शहीद हुये शहीद कमांडो गजेन्द्र सिंह बिष्ट का गांव है। लोकसंस्कृति की थाती 150 परिवार वाले इस गांव के ठीक सामने चौखंभा पर्वत का नयनाभिराम दृश्य दिखाई देता है जो सदैव प्रेरणा और हौसला देता है तो वहीं दूसरी ओर सदानीरा मंदाकिनी नदी का शोर सदैव सृजनात्मक सोच को प्रेरित करता है। केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर से कला (ड्राइंग) में स्नाकोत्तर की डिग्री प्राप्त सुमित राणा वर्तमान में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। वे भविष्य में शिक्षक बनकर अपनी कल्पनाओं को रंग और कूची से नया मुकाम देना चाहते हैं। 2015 में अपने पांच सहपाठियों– प्रमोद रावत (चमोली), त्रिलोक रावत (अल्मोड़ा), सूर्यकांत गोस्वामी (रूद्रप्रयाग), नीरज भट्ट (रूद्रप्रयाग), आलोक नेगी(पौडी) और वे स्वयं के साथ मिलकर Alive Art Group बनाया ताकि रंग और कूची की ये जुगलबंदी नये आयामों को छुये। तथा युवाओ को इसके सहारे एक मंच मिले। आज इस ग्रुप में 5 हजार से अधिक पेंटिंग अपलोड की जा चुकी है।
जबकि ग्रुप के द्वारा अभी तक देहरादून, श्रीनगर, अगस्त्यमुनि, रूद्रप्रयाग सहित विभिन्न स्थानों पर पेंटिंग की प्रदर्शनी लगाई जा चुकी हैं। जिनके बाद लोगों को मालूम हुआ की ड्राइंग (कला) का मतलब केवल आम, अमरूद बनाने तक सीमित नही है बल्कि पेंटिंग में असीमित संभावनाएं और अभिव्यक्ति का एक बहुत बडा माध्यम है। विगत दिनों चेज हिमालय द्वारा आयोजित ऑनलाइन पेंटिंग प्रतियोगिता में भी सुमित राणा नें दूसरा स्थान प्राप्त किया था।
— चार साल पहले काॅलेज की पढ़ाई पूरी करने के दौरान आया था वाल पेंटिंग का आईडिया !
चार साल पहले श्रीनगर में पढ़ाई के दौरान सर्वप्रथम सुमित के मन में विचार आया था की कुछ अलग करना है । उन्होंने अपने गांव में वाॅल पेंटिंग करने का निर्णय लिया था। लेकिन उसके बाद समय न मिल पाने से सुमित कास सपना अधूरा रह गया था। कोरोना वाइरस के वैश्विक संकट की इस आपातकालीन घडी में लाॅकडाउन नें सुमित के सपने को मानो पंख लगा दिये हों। लाॅकडाउन से पहले ही गांव के युवा देहरादून, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग से घर आ गये थे और लाॅकडाउन के कारण गांव में ही रहना पडा। इसी दौरान सुमित नें गांव में वाॅल पेंटिंग को लेकर गांव वालों के समक्ष बात रखी। नवयुवक संघ के सहयोग से गांव में वाॅल पेंटिंग के लिए एक बाॅक्स बनाकर रंग और कूचीयां खरीदने के लिए पैसे एकत्रित किये गये। जिसके बाद गांव के मुख्य रास्ते के दोनों ओर की दीवारों को वाॅल पेंटिंग से सजाया जा रहा है। अभी आधे गांव में ही ये वाॅल पेंटिंग का कार्य हुआ है। जल्दी पूरे गांव के सभी बसावटों में ये कार्य किया जायेगा।
— पहाड की लोकसंस्कृति, प्राकृतिक सुंदरता और वन्य जीव को वाॅल पेंटिंग में दर्शाया जा रहा है!
चित्रकार सुमित राणा से वाॅल पेंटिंग के संदर्भ में लंबी गुफ्तगु हुई। बकौल सुमित राणा, सीमित संसाधनों के बाबजूद भी मैंने लाॅकडाउन में कुछ नया करने का सोचा। आज खुशी होती है कि गांव की दीवारें पेंटिंग से जगमगा रही है। इसमें सभी युवाओं और सहयोगीयों की प्रेरणा से ही ये हो पाया है। अभी तो शुरूआत भर है, अभी लंबा सफर तय करना बाकी है। मेरी कोशिश है कि वाॅल पेंटिंग के जरिये पहाड की लोकसंस्कृति, प्राकृतिक सुंदरता और वन्यजीव को दर्शाया जाय ताकि लोगों को इनके बारे में जानकारी मिले और इनके संरक्षण और संवर्धन हेतु आगे आये। सूर्य की लालिमा हो या खेतों की हरियाली, आसमान का नीलापन या मेघों का कालापन, बारिश के बाद में बिखरती इन्द्रधनुष की अनोखी छटा, बर्फ़ की सफ़ेदी और ना जाने कितने ही ख़ूबसूरत नज़ारे जो हमारे अंतरंग आत्मा को प्रफुल्लित करता है। इस आनंद का राज है रंगों की अनुभूति। मानव जीवन रंगों के बिना उदास और सूना है। इसलिए जीवन में रंगो का होना जरूरी है।
— उत्तराखंड में वाल पेंटिंग को लेकर लोग हो रहें हैं आकर्षित!
विश्व के पहले वाल पेंटिंग गांव, टिहरी का सौड गांव और बागेश्वर के खाती गांव को वाल पेंटिंग के जरिये विश्व में पहचान दिलाने वाले उत्तराखंड के युवा प्रोजेक्ट फ्यूल के दीपक रमोला की अभिनव को गूगल ने अपने ऑनलाइन म्यूजियम में इन गांवों की पेंटिंग को दी है। जिसके बाद उत्तराखंड में वाल पेंटिंग को लेकर लोग आकर्षित हुए। गोपेश्वर, केदारनाथ, बद्रीनाथ, ऊखीमठ से लेकर देहरादून के विभिन्न जगहों पर वाल पेंटिंग की गयी। रूद्रप्रयाग जनपद के ऊखीमठ, कैलाश बांगर में शिक्षक दीपक नेगी व संदीप कुमार द्वारा भी निजी प्रयासों से ऊखीमठ और स्कूलों में वाल पेंटिंग कराई गयी। वहीं जिलाधिकारी चमोली स्वाति भदौरिया द्वारा चमोली के विभिन्न विद्यालयों में वाल पेंटिंग की अभिनव पहल कराई गयी, वाल पेंटिंग के जरिये छात्र छात्राओं को महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी। जबकि देहरादून के ग्राफिक ऐरा विश्वविद्यालय, देहरादून के छात्र छात्राओं द्वारा रंग और कूची से चमोली के वाण गांव की दीवारों को खिलखिलाने का अवसर दिया था।
वास्तव में देखा जाए तो रंग हमें एक रूप देते हैं, हमारे देखने को एक स्वरूप देते हैं। बिना रंगों के कोई त्यौहार, कोई उल्लास नहीं। बिना रंगों के कोई जीवन नहीं। एक बार सोच के देखिये, की बिना रंगों के जीवन कैसा होगा–? युवा सुमित राणा नें लाॅकडाउनका सदुपयोग करते हुए अपने गांव की वीरान दीवारों को रंग और कूची से जगमग करने का जो बीडा उठाया है वो न केवल अनुकरणीय है अपितु प्रेरणादायक भी है। हमारी ओर से सुमित राणा को सुनहरे भविष्य की ढेरों बधाइयाँ। आशा और उम्मीद करते हैं कि आने वाले समय में ये रंग आपके जीवन में भी खुशियों के रंग बिखेरे..