“…आन्दोलनों की दृष्टि से इस वक्त उत्तराखंड में जबर्दस्त सुनसानी है, मगर आशा है कि इस पदयात्रा से दबी हुई चिंगारी एक बार फिर से सुलगेगी। पदयात्री प्रवीण सिंह का कहना है कि वे उत्तराखंड की तमाम जन समस्याओं के अतिरिक्त पंचेश्वर बाँध के बारे में भी जनता से बातचीत करेंगे और एक जनमत तैयार करने की कोशिश करेंगे।…”
‘नशा नहीं रोजगार दो’ तथा ‘गैरसैंण स्थायी राजधानी हो’ की माँग के साथ नैनीताल से गैरसैंण तक की एक पदयात्रा सोमवार, 21 नवम्बर की प्रातः तल्लीताल डाँठ स्थित महात्मा गांधी की प्रतिमा से प्रारम्भ हो गई। पदयात्रा भवाली होते हुए आज शाम को तल्ला रामगढ़ पहुँचेगी और मोना-ल्वेशाल होते हुए संम्भवतः बुधवार की शाम को अल्मोड़ा। पदयात्रियों का इरादा सोमेश्वर, गरुड़, बागेश्वर, द्वाराहाट, चैखुटिया होते हुए 1 दिसम्बर तक गैरसैंण पहुँचने का है, जहाँ चार-पाँच दिन के सघन जन सम्पर्क के बाद 7 दिसम्बर को वे वहाँ आमरण अनशन पर बैठ जायेंगे। ध्यान देने की बात है कि गैरसैंण में 7 दिसम्बर से ही उत्तराखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र होना भी प्रस्तावित है।
तल्लीताल डाँठ पर पूर्व सांसद महेन्द्र सिंह पाल, स्वराज अभियान उत्तराखंड के प्रदेश अध्यक्ष राजीव लोचन साह, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केन्द्रीय अध्यक्ष पी. सी. तिवारी, ‘व्यसनमुक्त उत्तराखंड’ के लक्ष्य के साथ पिछले अनेक वर्षों से जन जागरण कर रहे एडवोकेट दयाकृष्ण जोशी, ‘उत्तरा महिला पत्रिका’ की सम्पादक उत्तराखंड महिला मंच की प्रो. उमा भट्ट, उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता बी. पी. नौटियाल, राज्य आन्दोलनकारी महेश जोशी, डाॅ. शीला रजवार, ऋतु पाठक, पुष्पा गैड़ा, एडवाकेट कैलाश तिवारी आदि ने पदयात्रियों को विदा किया। पी. सी. तिवारी भवाली तक तथा एडवोकेट दयाकृष्ण जोशी तल्ला रामगढ़ तक पदयात्रियों के साथ रहेंगे। शुरूआत में अभी चार व्यक्ति, प्रवीण सिंह, रामकृष्ण तिवारी, अरविन्द हटवाल तथा आदेश चैधरी स्थायी रूप से पदयात्रा में रहेंगे।
वाराणसी में जन्मे प्रवीण सिंह अब दिल्ली में रहते हैं। अण्णा हजारे आन्दोलन में बहुत अधिक सक्रिय रहने तथा उस आन्दोलन से मोहभंग होने के बाद भी प्रवीण के उत्साह और संकल्प में कमी नहीं आयी और देश में सामाजिक समरसता के लिये उन्होंने एकाधिक पदयात्रायें कीं। पिछले दिनों जब वे ऋषिकेश पहुँचे तो वहाँ आॅल इंडिया इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) द्वारा फीस में अनाप शनाप वृद्धि किये जाने के खिलाफ आन्दोलन चल रहा था। पिछली आधी सदी से सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहे और विभिन्न आन्दोलनों से जुड़े रहे 76 वर्षीय रामकृष्ण तिवारी आमरण अनशन में बैठे हुए थे। प्रवीण सिंह भी आन्दोलन में कूद गये। जनता का प्रबल समर्थन मिलने तथा अदालत से भी सकारात्मक मदद मिलने के बाद यह आन्दोलन सफल हुआ और एम्स प्रबन्धन को बढ़ाई र्गईं दरें वापस लेनी पड़ीं।
इसके बाद ही नैनीताल से गैरसैंण पदयात्रा का विचार जन्मा, जिसे नैनीताल के प्रबुद्ध लोगों तथा पुराने आन्दोलनकारियों का प्रबल समर्थन मिला। नैनीताल डाँठ पर पदयात्रियों को विदा करते हुए प्रो. उमा भट्ट ने उन्हें याद दिलाया कि वर्ष 2004 में स्थायी राजधानी की माँग को लेकर उन्होंने पाँच दिन तक गैरसैंण में आमरण अनशन किया था। प्रशासन द्वारा उन्हें बलपूर्वक उठा लिये जाने के बाद कई दिनों तक वहाँ क्रमिक अनशन चला और उसके बाद गैरसैंण से देहरादून तक एक पदयात्रा हुई। उन्होंने कहा कि 27-28 दिसम्बर को इन्हीं मुद्दों को लेकर हल्द्वानी में उत्तराखंड की महिलाओं का एक विशाल सम्मेलन होने जा रहा है। पी. सी. तिवारी ने याद दिलाया कि वर्ष 1984 में उनके गाँव बसभीड़ा (अल्मोड़ा) से ‘नशा नहीं रोजगार दो’ आन्दोलन की शुरूआत हुई थी, जो राज्य आन्दोलन से पूर्व का उत्तराखंड का सबसे जंबर्दस्त आन्दोलन था। एडवोकेट दयाकृष्ण कांडपाल ने सरकार द्वारा प्रदेश के आबकारी कानूनों की अवज्ञा किये जाने को लेकर गहरी चिन्ता जताई। भवाली पहुँचने पर तरुण जोशी, नवीन आर्य और पृथ्वीराज सिंह आदि ने पदयात्रियों का स्वागत किया।
आन्दोलनों की दृष्टि से इस वक्त उत्तराखंड में जबर्दस्त सुनसानी है, मगर आशा है कि इस पदयात्रा से दबी हुई चिंगारी एक बार फिर से सुलगेगी। पदयात्री प्रवीण सिंह का कहना है कि वे उत्तराखंड की तमाम जन समस्याओं के अतिरिक्त पंचेश्वर बाँध के बारे में भी जनता से बातचीत करेंगे और एक जनमत तैयार करने की कोशिश करेंगे। उन्होंने बताया कि वे जिन गाँवों में जायेंगे, वहीं के लोगों से अपने लिये भोजन तथा रात्रि का आश्रय माँगेंगे।