राजीव लोचन साह
जुलाई 2007 में बैंक आफ बड़ौदा के तत्कालीन अध्यक्ष अनिल खंडेलवाल ने घोषणा की कि नैनीताल बैंक का बैंक आफ बड़ौदा में विलय होने जा रहा है। इस घोषणा के बाद बैंक आफ बड़ौदा के शेयरों में एकदम उछाल आ गया, मगर नैनीताल नगर में एक मुर्दनी सी छा गई, क्योंकि यहाँ के लोग नैनीताल बैंक को अपनी अस्मिता के साथ जोड़ कर देखते थे। नैनीताल से बाहर, बल्कि देश के अन्य प्रान्तों में भी नैनीताल बैंक का साईनबोर्ड उन्हें एक गौरव की अनुभूति कराता था, भले ही वे नैनीताल बैंक के शेयरहोल्डर तो क्या खाताधारक भी न हों। अतः उनमें पहले निराशा छायी और फिर आक्रोश। उसके बाद जो कुछ हुआ, वह नैनीताल बैंक के इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ है। उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी द्वारा हाथ खड़े कर दिये जाने के बावजूद नैनीताल की जनता ने नैनीताल बैंक की कर्मचारी यूनियन और स्टाफ एसोसिएशन के साथ कंधे से कंधा मिला कर एक जबर्दस्त आन्दोलन खड़ा किया और नैनीताल बैंक को बैंक आफ बड़ौदा के जबड़ों से सुरक्षित निकाल लाई। उस साल 6 सितम्बर को हुई बैंक की वार्षिक सामान्य सभा तो इतनी तनावपूर्ण हो गई थी कि बैंक के मैनेजमेंट द्वारा लाये गये गुण्डों के कारण उस सभा में तमंचे भी लहराये और खून भी बहा (देखें नैनीताल समाचार 15 से 30 सितम्बर 2007)।
इन तेरह-चैदह सालों में नैनी झील का बहुत सा पानी बलिया नाले से बह गया है। नैनीताल बैंक का भी चेहरा-मोहरा बदल गया है। उस वक्त के ज्यादातर अधिकारी-कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं। अब जो अधिकारी-कर्मचारी यहाँ कार्यरत हैं, उनके लिये नैनीताल बैंक को लेकर कोई भावनात्मक लगाव नहीं है। बल्कि उनमें से अधिकांश चाहते हैं कि नैनीताल बैंक का बैंक आफ बड़ौदा में विलय हो जाये तो उनके वेतन कुछ बेहतर हो जायेंगे। इन खतरों, कि इस विलय के बाद उन्हें बैंक आफ बड़ौदा की देश भर में बिखरी शाखाओं में कहीं भी पटका जा सकता है या कि बैंकिंग क्षेत्र इन दिनों कितना असुरक्षित हो गया है, की ओर उनका कोई ध्यान नहीं है।
नैनीताल बैंक अब अपने अन्त की ओर बढ़ रहा है।
अभी एक 94 वर्ष पुराना बैंक लक्ष्मी विलास बैंक, कुप्रबंधन के कारण अपना अस्तित्व खो बैठा, वह भी उस सरकार के नेतृत्व में जो ‘लोकल के लिए वोकल’ है। भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी मूल के डी.बी.एस.बैंक में लक्ष्मी विलास बैंक के विलय को मंजूरी दे दी है। इस साल 31 जुलाई को अपने स्वर्ण जयन्ती वर्ष में प्रवेश करने जा रहे नैनीताल बैंक के लिए यह एक कठोर चेतावनी है।
विगत छः वर्षो से नैनीताल बैंक भी कुप्रबंधन का शिकार है। यहाँ कोई व्यवस्था ही नहीं है। बैंक आफ बड़ौदा नैनीताल बैंक का 98.6 प्रतिशत का स्टेक होल्डर है। बैंक आफ बड़ौदा के प्रतिनिधि अध्यक्ष व महाप्रबंधक के रूप में दो या तीन वर्ष के लिए प्रतिनियुक्ति पर आकर मनमाने तरीके से बैंक को चलाते हैं। अब तक का इतिहास रहा है कि ये लोग नैनीताल बैंक के बारे में तो ज्यादा सोचते नहीं, अलबत्ता अपना भविष्य उज्ज्वल बनाकर चले जाते हैं। इस बैंक के कर्मचारी, अधिकारी, अंशधारक व ग्राहक टुकुर-टुकुर देखते रह जाते हैं। अभी कुछ समय पूर्व बैंक के दो अध्यक्षों, एस.के. गुप्ता व मुकेश शर्मा के कार्यकाल में रुद्रपुर, बरेली, नोएडा, दिल्ली, गाजियाबाद आदि स्थानों पर अंधे की रेवड़ी की तरह मनमाने ढंग से बड़े-बड़े ऋण बांट दिये गये। कहने को धूमधड़ाके से बैंक का शाखा विस्तार किया जा रहा है, मगर यह अधिकांशतया हल्द्वानी और देहरादून तक सीमित है, क्योंकि एक नई शाखा खुलने से प्रबंधन में कई लोगों के हाथ चिकने होते हैं। क्या पांच राज्यों में कार्यरत बैंक के पास नई शाखायें खोलने के लिये अन्य अच्छे केन्द्र नहीं हैं ? हद तो तब हो गयी जब नैनीताल बैंक द्वारा भोपाल में एक मेडिकल काॅलेज के नाम पर 25 करोड़ रुपये डुबा दिये गये, मानो उत्तराखण्ड या उत्तर प्रदेश में अच्छे वित्तीय प्रस्तावों की गुंजाइश ही खत्म हो गई हो। ताजा खबर है कि भोपाल के उस तथाकथित मेडिकल काॅलेज को मान्यता ही नहीं मिल पाई, उसे कोविड सेंटर बना दिया गया और उसके परिसर में इन दिनों घास उग रही है। बैंक के भीतर यह स्कैंडल खूब चर्चित हुआ, मगर सार्वजनिक नहीं हुआ और इसीलिये इस पर कोई कार्रवाही भी नहीं हो पायी।
दो वर्ष पूर्व पहली बार बैंक में अध्यक्ष के रूप में उत्तराखंड मूल के दिनेश पन्त की नियुक्ति हुई तो सब को बड़ी उम्मीद जगी कि अब बैंक में भ्रष्टाचार खत्म होगा और बैंक सचमुच विकास के रास्ते पर आगे बढ़ेगा। मगर मौजूदा अध्यक्ष पिछले अध्यक्षों से डेढ़ हाथ आगे निकले। उन्होंने भ्रष्टाचार की परम्परा को तो आगे बढ़ाया ही, बैंक के भीतर परस्पर असंतोष और अविश्वास का एक विषैला माहौल पैदा कर दिया।
बैंक के कर्मचारी अपने खून-पसीने से बैंक को आगे बढ़ाने के लिये जुटे हुए हैं। इसके बावजूद चरम भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के कारण विगत वर्ष, मार्च 2020 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष पर बैंक की गैर निष्पादक आस्तियों का स्तर खतरनाक ढंग से अपने चरम, यानी 500 करोड़ से ऊपर पहुँच गया। गैर निष्पादक आस्तियों के विरुद्ध प्रावधानों में समायोजित कर एकाउंटिंग के कौशल से 68 करोड़ की हानि दिखा दी गई। इस घाटे के कारण अंशधारकों को डिविडेंड तो क्या मिलना था! वार्षिक साधारण सभा (ए.जी.एम.) में इस मामले में हंगामा होना तय था, मगर कोरोना काल का फायदा उठा कर इस सभा को वर्चुअल रूप से सम्पन्न करवा दिया गया, ताकि अंशधारकों के सवालों का जवाब न देना पड़े और हाथोंहाथ बैलेन्स शीट पास करा ली गयी।
अभी सितम्बर माह की छमाही में छोटा सा लाभ दिखा कर बैंक प्रबन्धन अपने गाल स्वयं बजा रहा है। उसका दावा है कि यह सफलता एन.पी.ए. रिकवरी के लिए किये गये अथक प्रयासों का नतीजा है। अब 500 करोड़ डुबा कर 25 करोड़ की रिकवरी करना कौन सी उपलब्धि है?
किसी भी संस्था की प्रगति उसके कर्मचारियों की संतुष्टि पर निर्भर करती है और कर्मचारियों की संतुष्टि से उत्तम ग्राहक सेवा, जो अब तक नैनीताल बैंक का पर्याय रही है, पैदा होती हैं। लेकिन वर्तमान प्रबंधन के उत्पीड़नात्मक रवैये से कर्मचारी यूनियन विगत छः वर्षो से आंदोलनरत है। बैंक के प्रबन्धन ने अधिनायकवादी रवैया अपनाते हुए संगठनों से वार्तालाप ही बन्द कर दिया है। कर्मचारी/अधिकारी को अनुशासनात्मक कार्यवाही की धमकी देना आम बात हो चुकी है। बैंक में न अब न कोई स्थानान्तरण नीति बची और न भर्ती के कोई निश्चित मापदण्ड। विगत डेढ़ वर्ष में दो बार अधिकारी/कर्मचारी (लिपिकीय संवर्ग) में भर्ती हो रही है लेकिन अधीनस्थ संवर्ग में 80 प्रतिशत स्थान रिक्त होने के बाद भी कोई भर्ती नहीं हुई। द्विपक्षीयता का पूर्ण अभाव है। इण्डियन बैंक एसोसियेशन का सदस्य होने के नाते नैनीताल बैंक भी उद्योग स्तर पर हुए सभी श्रम समझौतों को लागू करने के लिए बाध्य है। मगर एक तानाशाह की तरह अध्यक्ष महोदय उसकी परवाह ही नहीं करते। जाहिर है कि इससे बैंक के अधिकारियों-कर्मचारियों की कार्य कुशलता प्रभावित हो रही है।
कर्मचारी यूनियन द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक को शिकायत दर्ज कराने पर वर्तमान प्रबन्धन प्रतिशोध की भावना से कार्य कर रहा बल्कि मीडिया में अनर्गल प्रचार कर एसोसियोशेन को बदनाम कर रहा है। अभी अक्टूबर माह में अंशधारकों, कर्मचारी व अधिकारी संगठन द्वारा हरीश पंत की पूर्णतः अवैधानिक पुनर्नियुक्ति के संबंध्ा में व्यक्त की गई आपत्ति को प्रबंधन द्वारा पूर्णतः नकार दिया गया।
प्रबन्धन दावा करता है कि वह पूर्ण पारदर्शिता के साथ कार्य कर रहा है। मगर हकीकत यह है बैंक का प्रबंधन रहस्यों के घेरे में छिपा रहना चाहता है। लगभग सौ साल के इतिहास में बैंक का मुख्यालय नैनीताल में रहा है। मगर मौजूदा अध्यक्ष ने नैनीताल में बैठना ही बन्द कर दिया। वे सप्ताह के किस दिन नैनीताल में रहेंगे और कब एकाएक उठ कर कहाँ चले जायेंगे, किसी को पता नहीं रहता। नैनीताल बैंक के अध्यक्ष से भेंट करना तो दूर फोन पर बात करना किसी अंशधारक के लिये भी असम्भव हो गया है। क्या यह पारदर्शिता है ?
जिन लोगों को नैनीताल बैंक अभी भी नैनीताल और उत्तराखंड की अस्मिता का प्रतीक लगता है, उनके लिये अन्तिम चेतावनी। नैनीताल बैंक सम्भवतः अपने सौ साल भी पूरे न कर सके। नैनीताल बैंक के बोर्ड आफ डायरेक्टर्स से सहमति लेने के बाद पिछले दिनों बैंक आफ बड़ौदा ने अपनी बोर्ड मीटिंग में प्रस्ताव। पारित किया और उसके बाद बैंक आफ बड़ौदा के अध्यक्ष/सी.एम.डी द्वारा एक बयान दिया गया कि वह नैनीताल बैंक में अपने अंश बेचने जा रहा है। अर्थात् अब कोई नया काॅरपोरेट नैनीताल बैंक का मालिक होगा। तब इसका नाम नैनीताल बैंक भी रहेगा या नहीं, क्या मालूम!
तो इस वक्त यक्ष प्रश्न यह है कि भारत रत्न गोविन्द बल्लभ पन्त द्वारा स्थापित नैनीताल बैंक क्या अपने 100 साल पूरे करेगा या निन्यानबे साल में रन आऊट हो जायेगा ? क्या नैनीताल की जनता का जश्न मनाने का यह मौका भी उससे छीन लिया जायेगा ?
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।
3 Comments
R K Shah
Brilliant reporting of chronological facts and the helpnessness of the people who have struggled to a small but good Bank with good fundamentals but has been victimized by inefficient , corrupt and inexperienced cult of Bank of Baroda persons all of them leaving the Bank scot free with out being accountable for loss to the Bank.Why the mess created by them should not be given into public domain/scrutiny by the regulator?
Girish Chandra Pokhriyal
एक पंत गोविंदबल्लभ जी ने नैनीताल बैंक की स्थापना की ,दूसरे पंत दिनेश इसको बर्बाद करने मे तुले हैं,मजे की बात ये है कि ये पंत उन चाटुकार,सिफारिशी कर्मचारियों/अधिकारियों की सरपरस्ती कर रहें हैं,जो न केवल भृष्ट हैं,अपितु बैंक की बर्बादी मैं सहयोगी हैं, दूसरी मजे की बात ये है श्रीमान दिनेश पंत का लालन- पालन, शिक्षा – दीक्षा, एक बैंक कर्मचारी के घर मे जन्म होने के बाद हुई है और वह व्यक्ति अपनी छुद्र महत्वाकांक्षी इच्छाओं के कारण इस बैंक की बर्बादी का कारण बन रहा है,
Nisha kamath
I must say this is a well written article about the Naini Bank. Every point is analysed, except one point. Of course Naini bank is Hills Bank but how come the shareholders chose to keep mum over these years why this small but beautiful bank was never allowed to grow up as a favourite Hills Bank? Why the State ignored this bank for doing business with the bank? Why the people of hifi business never cared for their own bank? Why shareholders eyed only on dividends over the years? As of now survival is the biggest issue for the employees and nothing else.