One Comment

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    राजेन्द्र भट्ट

    बहुत अच्छा लेख। पर्वतीय कला केंद्र की प्रस्तुतियों में उनकी भूमिकाओं का जिक्र होता तो और भी अच्छा होता। वैसे, इस विषय पर तो अलग से लेख होना चाहिए। मोहन उप्रेती वाली गौरवशाली पीढी अब समाप्त हो रही है। उनसे सीधे जुड़े, उनकी नाट्य परंपरा के गवाह और मर्मज्ञ विद्वानों से , बिना शब्द सीमा के स्मृति लेख लिखवाए जाएं तो महत्वपूर्ण विरासत का डॉक्यूमेंटेशन हो सकता है। कभी अच्छे दिन आएंगे तो राह दिखा सकता है।

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