कमल जोशी
अगस्त क्रान्ति दिवस पर अल्मोड़ा राजकीय जिला चिकित्सालय परिसर में पंडित हरगोविन्द पन्त की मूर्ति के लोकापर्ण के बहाने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के जननायक को याद किया गया। समारोह में इतिहासकार,’पहाड़’ के संपादक डा- “शेखर पाठक जब कह रहे थे कि अल्मोड़ा नगर के लोग अपने महान सपूतों से बेखबर नहीं होंगे तब मैं सोच रहा था कि पता नहीं कितनों, खासकर बच्चों व नई पीढ़ी, को इनके बारे में जानकारी होगी। इतिहास के पन्नों में छिपे स्वतंत्रता-सेनानियों बारे में बहुत कम चर्चा होती हैं, वह भी यदा-कदा ही। वैसे आज हमारे ‘हीरो’ भी दूसरी प्रवृत्तियों के तथा अपने धंधे-व्यवसाय में खूब कमाने वाले, न कि देश-समाज के लिये लुटाने वाले हैं।
अल्मोड़ा के इस अस्पताल का नामकरण पहले से ही पं- हरगोविन्द पंत के नाम पर है, जबकि इसी के ठीक सामने स्थित जिला महिला चिकित्सालय स्वतंत्रता-सेनानी विक्टर मोहन जोशी के नाम पर है। आज के समारोह में नगरपालिका परिषद के अध्यक्ष ने जानकारी दी कि अल्मोड़ा नगर से जुड़े तीसरे प्रमुख स्वतंत्रता-सेनानी ‘कूर्मांचल केसरी’ बद्री दत्त पाण्डे की मूर्ति स्थापित करने का भी प्रयास हो रहा है। यह सकारात्मक कदम है, लेकिन मूर्तियों से हमें कितनी जिज्ञासा व प्रेरणा मिलती है यह सवाल अपनी जगह है। अल्मोड़ा के ऐतिहासिक ज़िला कारागार में यहां बंदी रहे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों की जानकारी देते अनेक सूचना पट लगे हैं, लेकिन गौर से देखने की फुर्सत कितनों को है? पं- हरगोविन्द पंत यहां दो बार बंदी रहे- 25 अगस्त से 11 सितम्बर 1930 तक और 7 दिसम्बर 1940 से 4 अक्टूबर 1941 तक।
आज के समारोह में डा- शेखर पाठक सहित अनेक वक्ताओं ने जननायक पंत के व्यक्तित्व और राजनीतिक-सामाजिक में उनके महत्वर्पूण कार्यों पर प्रकाश डाला। उनके जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर प्रसारित मुद्रित सामग्री भी वितरित की गयी। संयो्ग से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस जननायक का जन्म 1885 मे हुआ। हरगोविन्द पंत अल्मोड़ा के नज़दीक चितई में 19 मई को पैदा हुए। उन्होंने अल्मोड़ा जी-आई-सी- में पढ़ा जो उनके समय में हाईस्कूल हुआ करता था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई करने के बाद रानीखेत में वकालत की शुरुआत की। उनकी गिनती उत्तराखण्ड के सबसे सफल वकीलों में थी। महात्मा गांधी की प्रेरणा से उन्होंने वकालत छोड़ स्वतंत्रता आदोलन में भाग लेने का निश्चय किया।
कुमाऊं में राजनैतिक चेतना जगाने के उद्देश्य से उन्होंने ‘सोशियसल क्लब, कुमाऊं परिषद् जैसी संस्थाओं की स्थापना में महत्वर्पूण भूमिका निभाई। कुली बेगार आंदोलन, जिसे गांधीजी ने ‘रक्तहीन क्रान्ति’ की संज्ञा दी थी, में वे प्रमुख भागीदार रहे। वे उस दौर (1925-29) में अल्मोड़ा ज़िला परिषद् के अध्यक्ष रहे जब यह जिला आज की तुलना में बहुत बड़ा हुआ करता था। डा. पाठक ने जानकारी दी कि वे निरंतर कठिन पैदल यात्रायें करते थे प्रतिदिन कई मीलों तक। श्री सुशील चन्द्र जोशी द्वारा 1985 में प्रकाशि्त मुद्रित सामग्री में उनके व्यक्तित्व का सजीव चिन्तण है- ”गौर वर्ण उन्नत ललाट, बिना संवारी हुई बड़ी-बड़ी मूछें, मध्यम कद, दोहरा शरीर, गांधी टोपी, खद्दर का चूडीदार पैजामा, कुर्ता या शेरवानी, एक कंधे में पंखी, दूसरे पर एक झोला जिसमें दो धोतियां, एक कुर्ता, एक पैजामा, दो छोटी-छोटी थैलियों में कसार तथा कच्चा चावल। हाथ में छड़ी—।’’ महात्मा गांधी की अल्मोड़ा यात्रा में भी पं पंत जी उनके साथ रहे।
बड़ी रोचक बात है कि निजी जीवन में वे एक ओर इतने कट्टर थे कि स्वयं या अपने परिवार के लोगो दवारा बनाये गये भोजन के अलावा अन्य किसी का पकाया भोजन तक नहीं खाया करते थे, लेकिन दूसरी तरफ, जैसा कि डॉ. शेखर पाठक ने जानकारी दी, उच्च कुल के माने जाने वाले ब्राह्मणों द्वारा हल न चलाने की प्रथा (जो आज भी जीवित है) को उन्होंने 1928 में बागेश्वर में स्वयं हल चलाकर मिटाने की पहल की। उन्होंने नायक-प्रथा के उन्मूलन में महत्वर्पूण भूमिका निभाई।
पं हरगोविन्द पन्त उत्तराखण्ड के सबसे प्रमुख कांग्रेसी नेताओं में थे। वे प्रान्तीय असेम्बली में सदस्य और उप-सभापति, स्वतंत्रता के बाद लोकसभा सदस्य और भारत की संविधान-सभा के सदस्य जैसे महत्वर्पूण पदों पर चुने गये और जैसा कि डॉ. शेखर पाठक ने कहा — अल्मोड़ा शहर से किसी का संविधान सभा में सदस्य होना बड़े गर्व का विषय है। डॉ पाठक ने बताया कि प्रांतीय असेम्बली में वे इतनी ज्यादा संख्या में तथा गंभीर प्रश्न पूछते थे कि सरकार की तरफ से जवाब देने वाले सेक्रेटरी को बहुत परिश्रम करना होता था।
समारोह में अल्मोड़ा नगर के विभिन्न वर्गो- जन-प्रतिनिधि, वकील,पत्रकार, चिकित्सक, शिक्षक, अवकाश प्राप्त सरकारी अधिकारी, सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ता इत्यादि की बड़ी संख्या उपस्थित दिखी। लेकिन बच्चों, किशोर वय के लोगों तथा नवयुवाओं वर्गो की कमी यहां भी खल रही थी। कार्यक्रम में उत्तराखण्ड विधानसभा के उपाध्यक्ष श्री रधुनाथ सिंह चैहान, पूर्व विधायक श्री मनोज तिवारी व श्री कैलास शर्मा, नगरपालिका अध्यक्ष श्री प्रकाश चन्द्र जोशी, जिला अधिकारी श्री नितिन सिंह भदौरिया पंतजी के परिवार के सदस्य इत्यादि मंचासीन थे। उनकी पुत्रवधु श्रीमती लज्जा पंत, पौत्री श्री आशुतोष पंत और पौत्र वधु डा- वसुधा पंत का समारोह में शाल ओढ़ा कर सम्मान किया गया।