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    PS Bhandari

    यह यात्रा वृतांत पहले भी पढ़ी थी और आज सुबह साइक्लिंग कर वापस लौटने पर फिर दुबारा इस बडे और लंबे और रोचक यात्रा संस्मरण को पढ़ने का लोभ संवरण नहीं कर सका और सुबह के एक्सरसाइज के गीले कपड़ों में ही इसे पुनः पढ़ने बैठ गया। इसे पढ़ते पढ़ते मुझे ऐसा लग रहा था जैसे में अपनी 2015 के कैलाश मानसरोवर यात्रा पर पुनः निकल पड़ा हूं। बहुत ही रोचक और विस्तार पूर्वक वर्णन किया है। अभी पिछले महीने ही आदि कैलाश की रोड द्वारा यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पर यात्रा करने के पश्चात ऐसा महसूस हुआ जैसे कुछ मिसिंग था। वास्तव में ट्रैक द्वारा आदि कैलाश और ॐ पर्वत और कैलाश मानसरोवर की दुर्गम या असाध्य पैदल यात्रा के अपने ही खट्टे मीठे अनुभव होते हैं, और अब वहां तक रोड बन जाने के उपरांत यहां जा कर ऐसा लगता है जैसे यह यात्रा अब touch and go या लक्जरी trip हो गई है , जिसको हर कोई सहूलियत के हिसाब से जब मर्जी कर सकता। यहां तक रोड बनने से जहां एक ओर आस पास के गावों के युवकों को, लोगों को रोजी रोटी और अन्य सुविधा प्राप्त हुई है परंतु दूसरी ओर रोड निर्माण से आदि कैलाश, ॐ पर्वत और कैलाश मानसरोवर यात्राओं की दुर्गम यात्राओं का आनंद एक दम ही खत्म हो जाएगा. ……खैर जब कुछ मिलता है तो कुछ खोना भी पड़ता है, पर ज्यादा मिला या कम यह तो समय निश्चित करेगा। बहुत सुंदर संस्मरण के फिर से बहुत बहुत बधाई और धन्यवाद।

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