कमलेश जोशी
“जब अच्छा दाम मिल रहा है तो बिक क्यों नहीं जाते? आखिर क्या रखा है ऐसी विधायकी में जहॉं दो चार करोड़ कमाने के भी लाले पड़े हों? यादव जी को ही देख लो, जुम्मे-जुम्मे दो साल हुए हैं विधायक बने लेकिन घर में तीन-तीन लक्जरी गाड़ियॉं और शहर में दो-दो आलिशान बंगले खरीद चुके हैं और एक आप हैं तीसरी बार विधायक बनने के बाद भी समाज सेवा का भूत सिर में लिए घूम रहे हैं. इतने साल हो गए न जनता कि सेवा करते हुए! अब अपनी सेवा पानी भी कुछ करेंगे या नहीं?” किचन में पकौड़े तलते हुए विधायक जी की पत्नी गुर्रायीं.
“अमॉं कमाल करती हो तुम भी. पार्टी, विचारधारा, आत्मसम्मान और पार्टी के प्रति निष्ठा भी कोई चीज होती है कि नहीं? ऐसे कैसे पार्टी को दगा देकर किसी दूसरे के हाथों बिक जाएँ? अभी हमारी सरकार पावर में है और जो पावर में होता है चलती भी उसी की है”-विधायक जी पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता की तरह अपने बचाव में बोले. “पावर में हैं से कब पावर में थे हो जाओगे पता भी नहीं चलेगा और किस निष्ठा और आत्मसम्मान की बात कर रहे हैं आप? अपने पूरे राजनीतिक करियर में तीन पार्टियॉं तो आप पहले ही बदल चुके हैं. राजनीति में अवसरवादिता से बढ़कर भी कुछ होता है क्या? आप पार्टी के अच्छे विधायकों में से एक हैं तो मौके का फायदा उठाइये. या तो खुद की पार्टी से पोर्टफोलियो की मॉंग कर डालिये या फिर धमकी देकर दूसरी पार्टी ज्वॉइन करने का पासा फेंकिये. आज की तारीख में जब सारे विधायक सिर्फ अपने बारे में सोच रहे हैं तो आप काहे श्रवण कुमार बन पार्टी और जनता की सेवा का बिगुल बजा रहे हैं? और इस ईमानदारी से आखिर में मिलेगा क्या? विपक्ष की कुर्सी और बहुत सारी लानतें! आज के समय में ऐसी ईमानदारी से तो बेहतर है उस की तरफ हो लीजिये जिससे कुछ फायदा मिल सके”-पत्नी ने विधायक जी के राजनीतिक ज्ञान चक्षु खोलने की कोशिश की.
“वैसे बात तो तुम ठीक ही कह रही हो. पिछली सरकार में भी मंत्री पद के लालच में आकर चौहान जी अपनी पार्टी छोड़कर हमारी पार्टी में शामिल हो गए थे और आजकल भी चर्चा तेज है कि चौहान जी बागी हो सकते हैं और फिर से अपनी पुरानी पार्टी में वापस जा सकते हैं. विधायकों और नेताओं की खरीद-फरोख्त वैसे भी अब आम बात हो चली है. जहॉं अच्छा दाम या पोर्टफोलियो मिले वहॉं जाने में बुराई भी क्या है”-विधायक जी पार्टी लाइन और विचारधारा की ऐसी-तैसी करते हुए बोले. “तो ठीक है कल जाकर पार्टी आलाकमान को बता दीजिये कि आप क्या चाहते हैं”-पत्नी ने लगभग हुक्म देकर विधायक जी से कहा.
अगले दिन विधायक जी आलाकमान के पास अपनी बात रख पाते इससे पहले उन्हें सूचना मिली कि पार्टी के 25 विधायकों ने पार्टी के खिलाफ बगावत कर दी है और उन सबको गुप्त मार्गों से ले जाकर दिल्ली के किसी पॉंच सितारा होटल में ठहराया गया है जहॉं वह लगातार दूसरी पार्टी के संपर्क में बने हुए हैं. स्थिति को नाजुक जान विधायक जी ने भी अपना पासा फेंका और खुद की नीलामी की घोषणा कर दी. अगले चंद घंटों में ही विधायक जी भी हेलीकॉप्टर से दिल्ली के उस पॉंच सितारा होटल में पहुँचा दिये गए. होटल के अंदर का माहौल एकदम कॉल सेंटर जैसा था. विधायकों के फोन लगातार बज रहे थे और सारे विधायक अपनी अपनी सहूलियत से होटल के कमरों के कोने पकड़े अलग-अलग पार्टियों के आलाकमान से डीलिंग कर रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो सोनपुर पशु मेले में जानवर रूपी विधायकों की खरीद फरोख्त के लिए व्यापारी बोली लगा रहे हों. विधायक जी को अपनी ही पार्टी के आलाकमान का फोन आया-“आपसे ऐसी उम्मीदें न थी. आप तो पार्टी का प्रमुख चेहरा और वरिष्ठ नेता हैं. देर सबेर ही सही लेकिन कोई न कोई उच्च पद तो आपको कैबिनेट में मिल ही जाता. पार्टी और आलाकमान पर भरोसा रखिये और तुरंत प्रभाव से आकर आलाकमान से मिल लीजिये. आपके हित पार्टी में सुरक्षित रखे जाएँगे.”
अभी बात खत्म भी नहीं हुई थी कि विपक्षी पार्टी के एक बड़े नेता का नंबर फोन में गड़गड़ाने लगा. विधायक जी ने अपनी पार्टी का कॉल काटा और विपक्षी पार्टी का कॉल उठाकर बोले-“देखिये हमें अपनी पार्टी में ऐसी कोई दिक्कत नहीं है लेकिन अगर आपका ऑफर समझ में आएगा तो इस विषय में गंभीरता से सोच सकते हैं”. नेता जी बोले-“देखिये बाकी विधायकों को हमने 25 करोड़ ऑफर किया है और वो लगभग मान भी गए हैं. तीन विधायक ऐसे हैं जो आपके निर्णय का इंतजार कर रहे हैं. जिस तरफ आप जाएँगे उसी करवट वो भी बैठेंगे. तो आप 30 करोड़ में डील पक्की करिये.” विधायक जी ने मौके की नजाकत को भाँप लिया और बोले-“30 करोड़ ठीक है लेकिन साथ में कोई पोर्टफोलियो मिले तब बात है न! अपनी पार्टी से बगावत करना कोई आसान बात तो है नहीं. कल फिर उसी सदन में बैठना है और उन्हीं सब विधायकों का सामना करना है. जनता के समक्ष भी जवाबदेही तय करने के लिए कुछ तो ऐसा हाथ लगे कि लोग कहें कि हॉं पार्टी जरूर बदले लेकिन हाथ में कुछ जिम्मेदारियॉं भी आई.” नेता जी बोले-“चलिये आलाकमान से मिलकर इस पर बात करते हैं लेकिन आप विचार कीजिये 30 करोड़ छोटी रकम नहीं होती. जिंदगी भर विधायकी कीजियेगा तो भी इतना पैसा नहीं कमाइयेगा. सोच समझ के निर्णय लीजियेगा.”
तीन दिनों तक विधायक जी होटल में इसी कशमकश में रहे कि आखिर में बिक भी पाएँगे कि नहीं! इसी बीच पत्नी का कॉल आया-“आखिर चल क्या रहा है? तीन दिन से आपकी कोई खोज-खबर नहीं है. टीवी में तो बता रहे हैं कि सरकार अभी नहीं गिरी है? आपकी पार्टी के मुख्यमंत्री बोल रहे हैं सरकार सुरक्षित है. आप आखिर बिके कि नहीं? कितने की बोली लगी है?” विधायक जी बोले-“30 करोड़ के साथ पोर्टफोलियो माँगे हैं. देखते हैं क्या होता है. बाकी रूलिंग पार्टी वाले भी तो सरकार बचाने के लिए अपने विधायकों को रिटेन करने और कमी पेशी होने पर खरीद फरोख्त में लगे ही होंगे. देखिये हॉर्स ट्रेडिंग में जो जितनी ऊंची बोली लगाएगा वो कुर्सी के उतने ही करीब पहुँच पाएगा. चलिए बताते हैं आखिर में क्या होता है.”
उधर विधायक जी का बेटा पिताजी के बिकने के इंतजार में बेसब्र हुआ जा रहा है ताकि पिता जी बिकें तो वो नई मर्सिडीज खरीद सके. वो अपनी मॉं से पूछता है-“अभी और कितने दिन लगेंगे मेरी नई मर्सिडीज के आने में?” मॉं बोली-“बेटा तुझे क्या लगता है मुझे तेरी मर्सिडीज की चिंता नहीं है क्या? मैं भी चाहती हूँ जल्द से जल्द तेरी मर्सिडीज के साथ-साथ दिल्ली के वसंत कुंज में सर्दियों के लिए और मसूरी में गर्मियों के लिए एक बंगला खरीद लें लेकिन तेरे पिताजी बिकें तब ना. तू बस दुआ कर तेरे पिताजी अच्छे दाम में बिक जाएँ और उन्हें नई सरकार में कोई पोर्टफोलियो भी मिल जाए फिर तेरी मर्सिडीज भी आ जाएगी और हमारे नए बंगले का सपना भी पूरा हो जाएगा.”
विधायक जी, उनका परिवार, पक्ष, विपक्ष और मीडिया सब अपनी नजर विधायकों की हॉर्स ट्रेडिंग पर गड़ाए हुए हैं और जनता फुटबॉल की तरह कभी खुद को गोल पोस्ट के इस तरफ तो कभी उस तरफ लात खाती हुई चुपचाप देख रही है.