वर्ष 40:अंक 24 II 1- 15 अगस्त 2017
उन दिनों हमने एक समानान्तर दुनिया के सपने रचे
चौदह दिसंबर की सुबह जब राजीव लोचन साह का मोबाइल पर संदेश आया कि नंदकिशोर भगत नहीं रहे, तो मैं उसकी शक्ल याद करने लगा। इतने दिनों से उसके साथ संपर्क छूटा हुआ था कि मुझे शक्ल तलाशने में वक्त लगा। एक दुबले-पतले इंसान का भारहीन पुतला आँखों के आगे तैरने लगा, जिसे सक्रिय चेहरे […]
मेरे सारे गुरुओं में सबसे अलग थे….
पिछले एक-दो साल से ऐसा बार-बार होने लगा है कि कुछ-कुछ दिनों बाद किसी न किसी करीबी के बिछुड़ने की खबर मिल जाती है। वैसे तो मृत्यु जीवन का शाश्वत सत्य है, मगर अपने किसी भी परिचित, करीबी या आत्मीय की मृत्यु मन को गहरे तक विचलित कर ही देती है। भगत दा का जाना […]
भगत दा ! मेरे हमदम मेरे दोस्त
‘अपने भीतर और बाहर की नमी और हरियाली खो देने के बावजूद मनुष्य के लिये सर्वाधिक निरापद है धरती जो हमें पाना है कदाचित उसी के दर्पण में हमारा बिम्ब है’ ‘अरण्य’ पत्रिका का सपना और ‘वनरखा’ को साकार कर सुधी पाठकों में वन, पर्यावरण, ग्राम्या का वैचारिक उजास फैलाने वाले अपने ‘भगत दा’ नन्द […]
भगत दा का रचना कर्म…
(भगत दा द्वारा सम्पादित/प्रकाशित ‘बनरखा’ के प्रवेशांक का शकीय वक्तव्य। – सम्पादक) प्रकाशकीय ‘वनरखा’ का यह अंक हम केवल एक अनियतकालिक पत्रिका (स्मारिका) के रूप में ही प्रकाशित कर पा रहे हैं। इसके प्रकाशन के पूर्व हमने ‘अरण्या’ नाम से इसके प्रकाशन की घोषणा की थी, परन्तु कतिपय कारणों को ध्यान में रखते हुए, हमे […]
वे हमें समर्थ देखना चाहते थे
नंद किशोर भगत (वीरेन डंगवाल के नन्दू बॉस और हमारे भगतदा) 14 दिसम्बर 2011 को हमें अलविदा कह गये। नैनीताल समाचार के बुनियादी स्तम्भ थे भगतदा। एक सामान्य वन कर्मी की नौकरी करते हुए अपनी अलग सोच के कारण सामाजिक सरोकारों से जुड़े। कुछ कर सकने की छटपटाहट ने उन्हें ‘उत्तराखण्ड भारती’ से जोड़ा और […]
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