वर्ष 40:अंक 24 II 1- 15 अगस्त 2017
चारुचन्द्र पांडे और मथुरादत्त मठपाल सम्मानित
दीपा कांडपाल कुमाउनी के सन्दर्भ में जो अच्छी खबर आई है वह यह कि साहित्य अकादमी द्वारा ‘भाषा सम्मान’ इस बार मीनाक्षी सुन्दरम (दक्षिण) और मुनिश्वर झा (पूर्व) के साथ चारु चन्द्र पाण्डे एवं मथुरा दत्त मठपाल को संयुक्त रूप से दिया गया है। यह प्रकारान्तर से कुमाउनी भाषी का सम्मान है। ये दोनों ही […]
वाचिक परम्परा के साहित्यकार हैं आदि पर्वतीय शिल्पकार
देवेश जोशी पिछले दिनों जब प्रदेश का सारा नौकरीपेशा वर्ग प्रत्यक्ष रूप से और अन्य वर्ग अप्रत्यक्ष रूप से आरक्षण समर्थक और विरोधी खेमों में बँट गया था तो मैं सोच रहा था कि आरक्षण की बैसाखी प्रदान करने के बदले इस वर्ग को इसके निर्विवाद योगदान का श्रेय क्यों नहीं दिया जाना चाहिए ? […]
आज की हिन्दी कथा में चुकते हुए नरेशन के नाम एक समूचा उपन्यास
कुछ अतिरिक्त संवादपरकता में फँसे हमारे समकालीन कथा-समय में नरेशन को किनारे लगाने का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा। संवाद नहीं हैं तो ब्यौरे हैं, ब्यौरे नहीं हैं तो चित्रकारी है, पर नरेशन लगभग नहीं है। किस्सागोई के अंत से कथा के उत्तर आधुनिक सिरे खोलने की तैयारियाँ दिख रही हैं बिना यह जाने […]
याद आते रहेंगे शैलेश मटियानी
चन्द्रशेखर बड़शीलिया संघर्ष का दूसरा नाम था शैलेश मटियानी। उन्हें हमसे बिछुड़े हुए बारह साल हो गये परंतु अपने प्रखर व्यक्तित्व व जादूई कृतित्व के कारण वे सदैव याद किये जायेंगे। 24 अप्रेल 2001 को जब उनके निधन का समाचार मिला तो यकायक यकीन न हुआ लेकिन जो उनके नजदीकी थे वे जानते थे कि […]
छोटे परिवेश की बड़ी रचना के अंतर्विरोध
राजीव लोचन साह ने पहले लिखा, बाद में नवीन जोशी ने भी इसे दोहरायाकि शेरदा ‘अनपढ़’ की लोकप्रिय छवि एक हास्य कवि की बनती चली गई (बना दी गई), जो वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण था, हालाँकि अपने बाद के दिनों में खुद शेरदा अपने आप को हास्य कवि के रूप में प्रोजेक्ट करने में सम्मानित महसूस […]
हमने उन्हें जासूस समझा था…
12 फरवरी, 2012 की सुबह चन्द्रशेखर तिवारी ने विद्यासागर नौटियाल के देहान्त की सूचना दी तो लगा, मानो वर्षो की कमाई जमापूँजी लुट गई हो। उस दिन भाई राजेन्द्र टोडरिया की पहल पर नव प्रजामण्डल की बैठक में बार-बार नौटियाल जी चलचित्र की तरह मन-मस्तिष्क में आते-जाते रहे। …..बात 1973 की है। पिताजी का काशीपुर […]
पहाड़ के निष्कलुष, मगर फौलादी बेटे थे विद्यासागर नौटियाल
विद्यासागर नौटियाल का जाना भारतीय साहित्य की एक बड़ी क्षति तो है ही, राजनीति में भी मूल्यों और सिद्धान्तों के एक बड़े स्तम्भ का ढह जाना है। उनका व्यक्तित्व बेहद सहज और प्रेमिल था और उनके न होने से देहरादून में अनेक महत्वपूर्ण गतिविधियों और आयोजनों में उनकी कमी सभी जागरूक लोगों को बहुत सालती […]
स्पार्टाकस थे विद्यासागर नौटियाल
राजकुमारी पांगती टिहरी में सरकारी नौकरी करने के दरम्यान 1977 से मैं विद्यासागर नौटियाल जी को पूरे कुनबे सहित जानती रही हूँ। अन्तिम मुलाकात देहरादून में उनके निवास पर 2007 में हुई थी। तब अपनी लिखी पुस्तकों का एक बड़ा बण्डल बाँध कर उन्होंने मुझे दिया। मेरे द्वारा दी गयी पुस्तकों के मूल्य की राशि […]
उन दिनों हमने एक समानान्तर दुनिया के सपने रचे
चौदह दिसंबर की सुबह जब राजीव लोचन साह का मोबाइल पर संदेश आया कि नंदकिशोर भगत नहीं रहे, तो मैं उसकी शक्ल याद करने लगा। इतने दिनों से उसके साथ संपर्क छूटा हुआ था कि मुझे शक्ल तलाशने में वक्त लगा। एक दुबले-पतले इंसान का भारहीन पुतला आँखों के आगे तैरने लगा, जिसे सक्रिय चेहरे […]
बाबा नागार्जुन महादेवी पीठ और लेखकों का जमावड़ा
‘आ तुझको मैं सैर कराऊँ, घर में घुसकर क्या लिखता है ?’ ऐसा तो बाबा नागार्जुन लिख गए हैं। लेखकों की भीरुता पर उनका ये तंज तब था, जब अभिव्यक्ति के दूसरे बायपास, जैसे ब्लॉग व सोशल नेटवर्किग साइट्स, लेखकों की पहुँच में नहीं थी। अब कुछ लोग कहने लगे हैं कि घर में बैठकर […]
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