वर्ष 40:अंक 24 II 1- 15 अगस्त 2017
कहाँ हो उत्तराखण्ड के टैगोर ? सामने तो आओ….
फिलहाल उत्तराखण्ड की सरकार को 21वीं सदी में एक अदद ‘टैगोर’ या कि ‘बंकिम’ की तलाश है जो ‘राष्ट्रगान’ या राष्ट्रगीत’ के समकक्ष इस राज्य के ‘राज-गीत’ की रचना करे। चूँकि राज्य के मुखिया की ऐसी ही उद्दाम इच्छा है। दो तीन माह पूर्व विभिन्न सांस्कृतिक समारोहों में उनकी यह इच्छा छलकी। इसकी पूर्ति के […]
आज की हिन्दी कथा में चुकते हुए नरेशन के नाम एक समूचा उपन्यास
कुछ अतिरिक्त संवादपरकता में फँसे हमारे समकालीन कथा-समय में नरेशन को किनारे लगाने का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा। संवाद नहीं हैं तो ब्यौरे हैं, ब्यौरे नहीं हैं तो चित्रकारी है, पर नरेशन लगभग नहीं है। किस्सागोई के अंत से कथा के उत्तर आधुनिक सिरे खोलने की तैयारियाँ दिख रही हैं बिना यह जाने […]
मानवता के विकास के लिये वैज्ञानिक मानसिकता जरूरी है
महादेवी वर्मा सृजन पीठ, रामगढ़ (नैनीताल) में वैज्ञानिक मानसिकता और हिंदी लेखन’ पर गंभीर विचार-विमर्श के लिए 26 व 27 मार्च 2012 को एक दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। संगोष्ठी का आयोजन विज्ञान तथा प्रोद्योगिकी विभाग (भारत सरकार) की स्वायत्त संस्था विज्ञान प्रसार, विज्ञान एवं आद्योगिक अनुसंधान परिषद् के राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं सूचना […]
उन दिनों हमने एक समानान्तर दुनिया के सपने रचे
चौदह दिसंबर की सुबह जब राजीव लोचन साह का मोबाइल पर संदेश आया कि नंदकिशोर भगत नहीं रहे, तो मैं उसकी शक्ल याद करने लगा। इतने दिनों से उसके साथ संपर्क छूटा हुआ था कि मुझे शक्ल तलाशने में वक्त लगा। एक दुबले-पतले इंसान का भारहीन पुतला आँखों के आगे तैरने लगा, जिसे सक्रिय चेहरे […]
स्वस्ती श्री : शैलेश मटियानी जी को जानना आवश्यक…..
करीब सात-आठ साल पहले, मटियानी जी की मृत्यु के बाद साहित्य अकादेमी ने मटियानी जी के संपूर्ण साहित्य का मोनोग्राफ तैयार करने का मुझे काम सौंपा। उनकी मौत से मैं तीन-चार साल तक उबर नहीं पाया था, इसलिए कुछ भी लिख नहीं पाया। बड़े प्रयत्नों के बाद जब उसका आरंभिक हिस्सा ‘कथादेश’ में छपा तो […]
चिट्ठी पत्री : थोड़ा अध्ययन कर लें ताकि पद की गरिमा पर आँच न आये
संस्कृत को किसी संरक्षण की आवश्यकता नहीं है बटरोही जी का पत्र पढ़ा। बटरोही जी ने लिखा है कि ’’जो हालत आज कुमाउनी-गढ़वाली आदि की है कभी वही संस्कृत की भी हुई थी, जब पाली (शुद्ध रूप पालि है) और प्राकृत (शुद्ध रूप प्राकृतों होना चाहिए क्योंकि प्राकृत भाषाएँ अनेक हैं) ने उसे हासिये पर […]
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