प्रमोद साह
श्री बची सिंह रावत जी उन चन्द लोगों में शामिल थे जिन के संसर्ग में रहकर हमने समाज को देखने की थोड़ा समझ विकसित की। यह वर्ष 1987 की बात थी जब ब्लाक प्रमुख का चुनाव था। श्री बच्ची सिंह रावत जी ताड़ीखेत ब्लाक से प्रमुख के उम्मीदवार थे। उन दिनों सभी स्थानों पर प्रमुख उम्मीदवार कांग्रेस पार्टी का ही होता था जिसका धनाढ्य और बाहुबली होना ही पहली पात्रता होती थी।
इधर बच्ची सिंह रावत जी रानीखेत में अपनी सरलता के लिए जाने जा रहे अधिवक्ता थे लेकिन उनके भीतर वह आत्मविश्वास नहीं था कि वह कांग्रेस के किसी धनाढ्य और बाहुबली प्रत्याशी का मुकाबला कर सकें। हालांकि प्रमुख के चुनाव में तब बी.डी.सी मेंबर के लिए रुपए से खरीद फरोख्त नहीं होती थी लेकिन बी.डी.सी मेम्बर को इकट्ठा रखने के लिए धन और बाहुबल की आवश्यकता होती ही थी।
द्वाराहाट से कांग्रेस प्रत्याशी के विरुद्ध स्वर्गीय विपिन त्रिपाठी उम्मीदवार थे और भिक्यासैण से श्री पुष्कर पाल। इन तीनों प्रत्याशियों का आपस में अच्छा गठजोड़ बन गया था। तीनों एक दूसरे की सहायता कर रहे थे। आपसी सहयोग से बिपिन दा और पुष्कर पाल विजय हुए।
चुनाव के दो दिन पहले कुछ आशंकाओं को लेकर बच्ची सिंह जी द्वाराहाट आए। विपिन दा ने श्री प्रताप बिष्ट पूर्व विधायक भिक्यासैण, और मुझे बच्घी सिंह जी के साथ कर दिया। हम दोनों ही युवा और मुखर थे। ताडीखेत जाकर थोड़ा माहौल बना आए। बाद के दिनों में बच्ची सिंह जी ने विधायक व सांसद होने के साथ ही केंद्रीय मंत्री का भी महत्वपूर्ण पद प्राप्त किया लेकिन यह उनकी सरलता व बडप्पन ही था कि वह उस शुरुआती संपर्क के प्रति हमेशा अपनी आंखों से कृतज्ञता जताते रहे थे।
यद्यपि सीधा और सरल होना राजनीति में कमजोरी समझी जाती रही, लेकिन स्वर्गीय बची सिंह रावत जी इस मिथक को तोड़ने में कामयाब रहे।