विनीता यशस्वी
2 अक्टूबर 1994 का मुजफ्फरनगर कांड स्वाधीन भारत के इतिहास में एक कलंक है। ब्रिटिश शासन के दौरान हुए जलियाँवाला बाग के हत्याकांड से ही इसकी तुलना की जा सकती है। उस रोज एक पृथक राज्य की माँग के समर्थन में धरना देने के लिये पूरे उत्तराखंड के लोग दिल्ली जा रहे थे। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार की पुलिस ने 1 अक्टूबर की रात्रि को रामपुर तिराहे के पास आन्दोलनकारियों को रोका और उन पर अमानुषिक उन पर अत्याचार किये। उन पर अंधाधुंध गोलियां चलायी गयीं, जिससे अनेक आन्दोलनकारी मारे गये और उनसे ज्यादा घायल हो गये। धरना-प्रदर्शन करने जा रही महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। अनेक आंदोलनकारी लापता हो गये। चश्मदीदों के अनुसार इस कांड के कई मृतकों को चुपचाप दफना दिया गया ताकि मृतकों की सही संख्या का पता न चल सके।
इस मामले में एफ.आई.आर. भी दर्ज हुई और कोर्ट के आदेश पर सी.बी.आई. जाँच भी हुई। इस कांड के पीड़ितों को आज तक भी न्याय नहीं मिला है, क्योंकि एक भी अपराधी को अब तक सजा नहीं हुई। इस घटना में 6 लोग शहीद हुए और 60 से भी अधिक 8घायल हुए थे। मुजफ्फरनगर कांड में नेहरू कालोनी के रविंद्र रावत उर्फ पोलू, भाववाला निवासी सतेंद्र चैहान, बद्रीपुर निवासी गिरीश भद्री, अजबपुर निवासी राजेश लखेड़ा, ऋषिकेश के सूर्यप्रकाश थपलियाल और उखीमठ रुद्रप्रयाग के अशोक केशिव शहीद हुए थे।
इस कांड के मर्म को दिखाती गोविन्द प्रंत ‘राजू’ की एक कविता
मुजफ्फरनगर
तुमने महसूस किया होगा
कितने सौंधे महकते हैं गन्ने के नर्म खेत
कितनी ठंडी
कितनी मुलायम, कितनी नर्म
होती है उनके नीचे की जमीन
तुमने सब महसूस किया रतन सिंह
चलकर गाँव की पगडंडियों से
मिट्टी की कच्ची सड़क पर
मोटर पर सवार होते वक्त
तुम्हें याद थी पोती की फरमाइश
उसकी आँखों के सामने, उसकी उम्मीदें
रास्ते में उस वक्त भी
जब तुम लगा रहे थे नारे
और उस वक्त भी
जब घड़ी नौ बजा रही थी
2 अक्टूबर 94 की उस सुबह
जब तुम तोड़ रहे थे दम
गन्ने के खेत में
कुछ लुच्ची कायर गोलियों का शिकार होकर
तुम्हें सब कुछ याद था
याद था तुम्हें मोर्चे में कुर्बान बेटा
सूनी कलाइयों वाली कमजोर बहू
फूल सी कोमल, पंछी सी चंचल पोती
ऊपर धार पार गधेरे से पानी लाती बीबी
16 मील दूर की राशन की दुकान
और बिन डॉक्टर का अस्पताल
तुम कितने भोले थे
क्या-क्या लेने जा रहे थे वहाँ,
तुम्हें दिल्ली देखने का शौक था
न रतन सिंह ?
गोविन्द पन्त राजू