कैप्टन सिंह
आंकड़ों के लिहाज से समझें तो भारत के कुल श्रम का 94% का कोई हिसाब नहीं है आबादी के लिहाज से समझें कुल कामकाजी मजदूरों में जो कृषि डेरी खदान और फैक्ट्रियों में काम करते हैं का कोई पक्का हिसाब नहीं. असंगठित क्षेत्र का यह मजदूर जीडीपी में 57% का योगदान कर रहा है . यह मजदूर है जो खेती के 5 महीने गांव घर खेत खलिहान में काम करता है और बाकी के 7 महीने कहीं भी मर खपता है . 2 जून की पक्की रोटी , चूंती छत से मुक्ति , अपने बच्चो को स्कूल जाते देखना ही उसका आज भी सबसे बड़ा सपना है .यह अलग बात है की अब उसका खर्च आटा से ज्यादा डाटा में होने लगा है .
अगर संख्या निकालने लगे तो भारत में ऐसे रोज कुआं खोदने वाले लोगों की संख्या 60 करोड़ के आसपास बैठती है . रियात करके चलें और 5 कमाने वालों को एक परिवार मान ले तो 12 करोड़ परिवार कुएं से दूर हो गए हैं . रोजी रोटी का संकट जो हमेशा भारी रहता था अब अकल्पनीय है ।
दूसरी तरफ हमारा भाग्यशाली कॉरपोरेटर है ,जिसकी संख्या टैक्सपेयर के रूप में आज भी 60 हजार के आसपास है . यह अलग बात है कि हमारे टोटल टैक्स रेवेन्यू का 33% से अधिक यहीं से आता है इसके माथे की पेशानियां हमसे देखी नहीं जाती . हम बिना किसी औपचारिकता के उसके हिस्से के एक लाख 45 हजार करोड़ माफ कर देते हैं .जिसका हमारी अर्थव्यवस्था में शून्य फायदा होता है. महान कॉरर्पोरेट इसके बिजनैस मॉडल को फिर समझेंगे . बस एक अनिल अंबानी को समझ लें . डूबने वाले यस बैंक ने 13 हजार करोड़ अनिल की रिलायंस इंफ्रा में डूबाए , आईडीबीआई के 58 00 करोड , पिछले वर्ष डूबे 99 हजार करोड के आइ.एल .एफ .एस के बड़े हिस्से में रिलायंस पावर का योगदान था . अभी कुछ ही समय पहले एसबीआई के 22हजार करोड 14हजार करोड में सेटल हुए . एलआईसी की बिकवाली संकट के पीछे भी आपकी बड़ी कृपा है. खैर संसार रहेगा तो आरोप-प्रत्यारोप भी रहेंगे अभी पहली प्राथमिकता जीवन बचाने की होनी चाहिए .
आप लोगों की मदद करने के मामले में कनाडा के जस्टिन ट्रूडो ने दुनिया का दिल जीत लिया है उसने 82 अरब डॉलर का पैकेज तैयार किया है. जो उनकी जीडीपी का 3% है . जिससे बच्चे, दुकानदार , कामकाजी और मजदूर सबको अलग-अलग दिया जा रहा है हर दो हफ्ते में आपके घर ठीक ठाक दान दक्षिणा पहुंचे इसका इंतजाम किया है वर्ल्ड बैंक ने भी $12 अरब डॉलर का इंतजाम किया है इस जंग से जीतने के लिए दुनिया का एक होना जरूरी है मगर उससे भी जरूरी है अपने फटेहालो के साथ खड़े रहना .
हमारे प्रधानमंत्री जी ने 15 हजार करोड़ की सहायता इस मद के लिए दी उनका बहुत शुक्रिया , राष्ट्रपति भवन के पुनर्निर्माण के लिए 20 हजार करोड़ के पैकेज को और अभी 6 महीने पहले एक लाख 45 हजार करोड़ की जो राहत कोरपेरट को दी गई. उसे भी इस जंग में जोड़ देना चाहिए.. केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन जिन्होंने 20 हजार करोड़ की व्यवस्था की और हमारे मुख्यमंत्री जिन्होंने उत्तराखंड जैसे गरीब राज्य में पहले चरण में पंजीकृत मजदूरों के घर ₹1000 मासिक और जिलाधिकारियों को अपने विवेक का अधिकार दिया है ताली उस पर भी बजनी चाहिए … इस संकट के समय हमें आखिरी पायदान के व्यक्ति का जरूर ध्यान रखना है . उन पर यह दिन भारी न पड़े यह जतन होनी ही चाहिए तभी जहान है ।